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________________ अष्टक-प्रकरण : एक परिचय जैन परम्परा के प्रमुख और बहुश्रुत आचार्य हरिभद्र चित्तौड़ या उसके समीप उत्पन्न हुए थे। उनके जीवन के विषय में बहुत कम सूचनायें उपलब्ध हैं। मुनि जिनविजय द्वारा स्थापित मान्यता के अनुरूप उनका समय ई० सन् ७५३-८२७ के मध्य है जिसे सभी विद्वान् स्वीकार करते हैं। हरिभद्र ब्राह्मण जाति के थे, उनकी माता गङ्गाबाई और पिता शङ्करभट्ट थे। वे चित्तौड़ के राजा जितारि के राजपुरोहित थे। उन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि वे जिसका कथन ग्रहण करने में असमर्थ होंगे, उसी का शिष्यत्व स्वीकार कर लेंगे। जैन साध्वी याकिनी महत्तरा के गाथा-पाठ को न समझ पाने के उनके जीवन के सर्वाधिक रोचक प्रसङ्ग ने हरिभद्र को जैन साधु जिनभट्ट सूरि का शिष्य बना दिया। उद्भट विद्वान्, राजपुरोहित और सबसे बढ़कर अभिमानी इस ब्राह्मण द्वारा जैन धर्म अङ्गीकार करना मात्र धर्म-परिवर्तन नहीं था बल्कि नया जन्म था। इस आध्यात्मिक पुनर्जन्म ने उनके जीवन और विचारों को नयी दिशा प्रदान की। यद्यपि उनका पूर्ण रूप से धर्मान्तरण हो गया था परन्तु उन्होंने पूर्ववर्ती परम्परा के अपने ज्ञान और मान्यताओं को सँजोये रखा। जिनधर्म के नये प्रभाव ने उन्हें पूरे मनोयोग से दार्शनिक और आध्यात्मिक प्रणयन में प्रवृत्त कर दिया था। पूर्व परम्पराओं के उनके उत्कृष्ट ज्ञान से सोने में सुहागा की उक्ति चरितार्थ हुई। उनकी प्रतिभा के जीवन्त प्रतिमान उनकी कालजयी कृतियों में धार्मिक कथायें, दार्शनिक, उपदेशात्मक, आचार और योगविषयक ग्रन्थ अत्यन्त उच्चकोटि के हैं। उन्होंने बहुत से प्रकरण ग्रन्थों की भी रचना की है, जिनमें अष्टकप्रकरण, षोडशकप्रकरण, विंशतिविंशिका और पञ्चाशकप्रकरण भी हैं। यहाँ संस्कृत भाषा में निबद्ध २५८ श्लोकों वाले अष्टकप्रकरण की संक्षिप्त विषय-वस्तु प्रस्तुत है। इसमें ३२ प्रकरण हैं और प्रत्येक प्रकरण में आठ-आठ श्लोक हैं। मात्र अन्तिम प्रकरण अपवाद है, जिसमें दस श्लोक हैं। इसके ३२ प्रकरणों के शीर्षक इस प्रकार हैं - १. महादेवाष्टकम्, २. स्नानाष्टकम्, ३. पूजाष्टकम्, ४. अग्निJain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001665
Book TitleAshtakprakaranam
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Religion, worship, & Principle
File Size8 MB
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