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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः ३३ सोमदेव- गौडसंघ के आचार्य नेमिदेव के शिष्य सोमदेव अपने समय के प्रथितयश लेखक थे। कनौज के राजा महेंद्रपाल (द्वितीय) तथा वेमुलवाड के चालुक्य राजा अरिकेसरी द्वारा वे सन्मानित हुए थे। शक ८८१ = सन ९५९ में उन का यशस्तिलकचम्पू पूर्ण हुआ था तथा शक ८८८ = ९६७ में अरिकेसरी ने उन्हें एक दानपत्र दिया था' । अतः दसवीं सदी का मध्य यह उन का कार्यकाल था। उन के यशस्तिलक तथा नीतिवाक्यामृत ये दो ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। नीतिवाक्यामृत की प्रशस्ति में उन्हों ने अपने तीन ग्रन्थों का उल्लेख किया है - महेंद्रमातलिस जल्प, पण्णवतिप्रकरण तथा युक्तिचिन्तामणि स्तत्र । इन में अंतिम ग्रन्थ के नाम से प्रतीत होता है कि वह तार्किक विषयों से सम्बन्ध होगा। अरिकेसरी ने सोनदेव को जो दानपत्र दिया था उस में उन के एक और ग्रन्थ स्याद्वादोपनिषद् का उल्लेख है। यह ग्रन्थ भी नान से तर्कविषयक प्रतीत होता है । ये ग्रन्थ अनुपलब्ध होने से उन के विषय में अधिक वर्णन सम्भव नही है। ३४. अनन्तवीर्य-अकलंकदेव के सिद्धिविनिश्चय पर अनन्तवीर्य ने विस्तृत टीका लिखी है। इस का विस्तार १८००० श्लोकों जितना है। अनन्तवीर्य रविभद्र के शिष्य थे तथा द्राविड संघान्तर्गतनन्दिसंघ-अरुंगळ अन्वय के आचार्य थे२ । उन्होंने प्रस्तुत टीका में सोनदेव के यशस्तिलकचम्पू से एक श्लोक उद्धृत किया है अत: उन का समय सन ९५९ के बाद का है। वादिराज ने तथा प्रभाचन्द्र ने अनन्तवीर्य को प्रशंसा की है अतः वे सन १०२५ के पहले हुए हैं। इस तरह उन का सयय दसवीं सदी का उत्तरार्ध निश्चित होता है। प्रस्तुत टीका में उन्हों ने मूल ग्रन्थ का विशद स्पष्टीकरण करते हुए १) जैन साहित्य और इतिहास. (पृ. १७७ )। २) इन के पहले एक और अनन्तवीर्य हुए थे तथा उन्हों ने भी सिद्धि विनिश्चयपर टीका लिखी थी जो प्राप्त नही है । प्रमेयरत्नमाला के कर्ता अनन्तवीर्य इन के कोई एक सदी बाद हुए हैं। विस्तृत विवरण के लिए देखिए-सिद्धिविनिश्चय टीका की प्रस्तावना पृ. ७५-८९ । ३) वन्देयानन्तवीर्याब्दं यद्वागमृतवृष्टिभिः। जगत् जिघत्सन् निर्वाणः शून्यवादहुताशनः॥ पार्श्वचरित १-२३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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