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________________ प्रस्तावना उपलब्ध जैन संस्कृत साहित्य में तत्त्वार्थसूत्र ही पहला ग्रन्थ है। इस के दस अध्यायों में कुल ३४४ सूत्र हैं तथा इस में जैन आगमों में चर्णित प्रायः समस्त विषयों का सूत्रबद्ध वर्णन किया है । इस के प्रथम अध्याय में ज्ञान के साधन के रूप में प्रमाण और नयों का संक्षिप्त वर्णन है । दूसरे अध्याय का जीवतत्त्व का वर्णन एवं पांचवें अध्याय का अजीव तत्त्व का तथा द्रव्य-गुण पर्याय का वर्णन आगमिक शैली में है और उत्तरचर्ती तार्किक साहित्य के लिए आधारभूत सिद्ध हुआ है। तत्वार्थसूत्र के दार्शनिक महत्त्व के कारण ही यह दिगम्बर तथा श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में सन्मानित हुआ है तथा दोनों सम्प्रदायों के आचार्यों ने इस पर टीकाएं लिखी हैं, यद्यपि इस के कुछ मत दोनों के ही प्रतिकूल हैं । दिगम्बर परम्परा में पूज्यपाद, अकलंक, विद्यानन्द, भास्करनन्दि तथा श्रुतसागर की टीकाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। श्वेताम्बर परम्परा में हरिभद्र, सिद्धसेन, मलयगिरि और यशोविजय की टीकाएं उल्लेखनीय हैं । आधुनिक समय में पं. सुखलाल, पं. फूलचंद्र, पं. कैलासचद्र आदि ने भी तत्त्वार्थसूत्र के विवरण लिखे हैं। उमास्त्राति का समय निश्चित नही है । वे समन्तभद्र से पूर्व हुए हैं। अतः चौथी सदी में या उस से कुछ पहले उनका कार्यकाल होना चाहिए। दक्षिण के शिलालेखों में उन्हें कुन्दकुन्द के बाद हुए माना गया है । इस के अनुसार भी उन का समय चौथी. सदी में प्रतीत होता है। १) प्रथम अध्याय में उमास्वाति ने कुछ संस्कृत पद्य पूर्ववर्ती साहित्य से उधृत किये हैं किन्तु यह पूर्ववर्ती साहित्य इस समय प्राप्त नहीं है । २) दिगम्बर परम्परा के सूत्रपाठ में ३५७ सत्र हैं । तत्त्वार्थसूत्र में करणानुयोग (गणित-भूगोल), चरणानुयोग ( आचारधर्म) तथा द्रव्यानुयोग (जीवाजीवादितत्त्व) का वर्णन है। सिर्फ प्रथमानुयोग (कथा) का समावेश नहीं है । ३) इस प्रश्न का विस्तृत विवेचन पं. नाथूराम प्रेमी ने 'जैन साहित्य और इतिहास' में किया है तथा उमास्वाति दिगम्वर और श्वेताम्बर दोनों से भिन्न यापनीय परम्परा के थे ऐसा स्पष्ट किया है (प. ५२१ और आगे)। ४) समन्तभद्र ने तत्त्वाथेसूत्र पर एक भाष्य लिखा था। इस का विवरण आगे दिया है। .५) जैन शिलालेख संग्रह भा.१ प्रस्तावना पृ. १२९-१४० ६) पं. प्रेमी ने अपने उपर्युक्त लेख में यही समय दिया है तथापि उन्हों ने जो कारण दिये हैं वे कुछ अनिश्चितसे हैं। वि.त.प्र.३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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