________________
-पृ.८९]
टिप्पण
३२७
पृष्ठ ८६ जो वाक्य हैं वे पौरुषेय हैं यह अनुमान चार्वाक, बौद्ध व जैनों ने प्रस्तुत किया है। वैशेषिकसूत्र में भी इस का समर्थन मिलता है। इस पर मीमांसकों का कथन है कि सभी वाक्य पौरुषेय नही होते-वे वाक्य ही पौरुषेय होते हैं जिन के कर्ता का स्मरण है; वाक्यत्व के साथ स्मर्यमाणकर्तृकत्व यह उपाधि हो तो ही उन में पौरुषेयत्व होता है। इस प्रसंग में लेखक उपाधि का स्वरूप बतलाते हैं । उपाधि वह होता है जो साध्य में सर्वत्र हो किन्तु साधन में विशिष्ट स्थानों पर हो । प्रस्तुत अनुमान में वाक्यों का पौरुषेय होना साध्य है तथा वाक्यत्व यह साधन है । मीमांसकों के कथनानुसार स्मर्यमाणकर्तृकत्व ( कर्ता का स्मरण होना) यह यदि उपाधि है तो वह साध्य में (पौरुषयत्व में) सर्वत्र होना चाहिए-जो जो पौरुषेय है उस के कर्ता का स्मरण है ऐसा कहना चाहिए । किन्तु ऐसा कथन सम्भव नही है।
पृष्ठ ८७–स्मर्यमाणकर्तृकत्व यह उपाधि पौरुषेयत्व इस साध्य में सर्वत्र व्यापक नही है यह स्पष्ट करने के लिए लेखक व्यापक और व्याप्य की परिभाषा देते हैं। एक वस्तु के हटने से यदि दूसरी वस्तु नियमतः हटती है तो पहली वस्तु को व्यापक तथा दूसरी वस्तु को व्याप्य कहते हैं। उदाहरणार्थ-जहां अनि नही होती वहां धुंआ नही होता, यहां अग्नि व्यापक है तथा धुंआ व्याप्ध है। प्रस्तुत अनुमान में कर्ता का स्मरण होना यह व्यापक माने और पौरुषेयत्व व्याप्य मानें तो उस का तात्पर्य होगा कि जिस जिस वस्तु के कर्ता का स्मरण नही है वह पौरुषेय नहीं है। किन्तु यह कथन उचित नही है । इसी प्रकार की का ज्ञान होना (ज्ञायमानकर्तृत्व) अथवा ये कृत हैं ऐसी बुद्धि उत्पन्न होना (कृतबुद्धथुत्पादकता) ये भी उपाधियां नहीं हो सकती क्यों कि ये भी साध्यव्यापी नही है। "
पृष्ठ ८८- वेद के मन्त्र अतीन्द्रिय विषयों का बोध कराते हैं तथा वे सामोपेत हैं-अद्भुत शक्ति से सम्पन्न हैं अतः वे पुरुषकृत नही हो सकतेयह मीमांसकों का तर्क है। किन्तु जैन तथा बौद्धों के आगमों में भी अतीन्द्रिय विषयों का वर्णन है-स्वर्गनरकादि का तथा मुक्ति, निर्वाण आदि का उपदेश है । एवं जैन तथा बौद्धों के शास्त्रों में भी विविध शक्तियों से सम्पन्न मन्त्रों का वर्णन है । अत: इस दृष्टिसे वेद तथा अन्य शास्त्रों में कोई भेद नही किया जा सकता । यह तथ्य धर्मकीर्ति ने प्रमाणवार्तिक में स्पष्ट किया है।
पृष्ठ ८९-वेद में विशिष्ट राजाओं के नामोल्लेख हैं अतः उन राजाओं
१) बुद्धिपूर्वा वाक्यकृतिवेदे । सूत्र ६।१।१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org