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________________ २९४ विश्वतत्त्वप्रकाशः [८८ यन्न गृह्यते तत् ततो नार्थान्तरम् , यथा वृक्षाग्रहे अगृह्यमाणं वनम्', न गृह्यते च तन्त्वग्रहे पटः तस्मात् ततो नार्थान्तरमिति। तथा यद् दृश्यं सन्नोपलभ्यते तन्नास्त्येव यथा खरविषाणम् । दृश्यः सन्नोपलभ्यते च अवयवीति च। तथा सुखदुःखादयो वेदनास्कन्धाः। सविकल्पकनिर्विकल्पकज्ञानानि विज्ञानस्कन्धाः। ___ जातिक्रियागुणद्रव्यसंशाः पञ्चैव कल्पनाः। अश्वो याति सितो घण्टी कत्तालाख्यो यथा क्रमात् ।। इत्येतत्कल्पनासहितं सविकल्पकं तद्रहितं निर्विकल्पकमिति। तथा वृक्षादिनामानि संक्षास्कन्धाः। शानपुण्यपापवासनाः संस्कारस्कन्धा इति। अत्र प्रतिविधीयते। यत् तावदुक्तं रूपरसगन्धस्पर्शपरमाणवः सजातीयविजातीयव्यावृत्ताः परस्परमसंबद्धा इति तत्र सजातीयव्यावृत्ता इत्ययुक्तम्। तेषां सदात्मना व्यावृत्तत्वे असत्त्वप्रसंगात्। द्रव्यात्मना ब्यावृत्तत्वे अद्रव्यत्वं रूपाद्यात्मना व्यावृत्तत्वे अरूपादित्वप्रसंगाच्च । तस्माद् बौद्धमत में अवयवी द्रव्य का अस्तित्व नही माना है। उनका कथन है कि यदि एक वस्तु का ज्ञान दूसरे के ज्ञान के विना न होता हो तो वे दोवस्तुएं अलग नही होती-वक्षों को जाने विना वन का ज्ञान नही होता अतः वन वृक्षों से भिन्न नही, इसी प्रकार वस्त्र तन्तुओं से भिन्न नही । अतः अवयवी का अवयवों से भिन्न अस्तित्व नही है । यदि अवयवी का अस्तित्व होता तो वह दिखाई देता । गधे का सींग दिखाई नही देता उसी प्रकार अवयवी भी दिखाई नही देता अतः दोनों का अस्तित्व नही है। यहां तक रूप स्कन्ध का वर्णन किया । सुख, दुःख आदि को वेदना स्कन्ध कहते हैं । सविकल्पक तथा निर्विकल्पक ज्ञान को विज्ञान स्कन्ध कहते हैं। जाति, क्रिया, गुण, द्रव्य, तथा संज्ञा ये पांच कल्पनाएं हैंउदाहरणार्थ, घोडा जाता है, सफेद घण्टा बांधे हुए, कताल नाम काये कल्पनाएं हैं।' इन से युक्त ज्ञान को सविकल्पक कहते हैं तथा इन से रहित ज्ञान निर्विकल्पक होता है । वक्ष आदि नामों को संज्ञा १ अत एव वृक्षा एव न वनम् अवयवि । २ तन्तव एव अवयवरूपाः न पटः अवयवी वर्तते । ३ यत् अवलोक्यमानं न दृश्यते तन्नास्ति यथा खरविषाणं । ४ पटघटवनादि । ५ सजातीयानां रूपरसादीनां । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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