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________________ -८६ ] बौद्धदर्शन विचारः २८७ इति सौत्रान्तिकः प्रत्यवोचत् । तावुभावप्यमाणिकौ स्याताम् । तथा हि । यदप्यवादी वैभाषिकः पदार्थानां विनाशस्वभाव समर्थनार्थ - वीताः पदार्थाः विनाशस्वभावाः विनाशं प्रत्यन्यानपेक्षत्वात् यद् यद् भावं प्रत्यन्यानपेक्षं तत् तत् स्वभावनियतं यथा अन्त्या कारणसामग्री स्वकार्यजनने इति तदप्यसमञ्जसम् । विनाशं प्रत्यन्यानपेक्षित्वादिति हेतोरसिद्धत्वात् । कुतः । वातानुपघातेन प्रदीपादेर्विनष्टत्वदर्शनात् । एवं च तेन क्रियमाणो विनाशः प्रदीपादेर्भिन्नः अभिन्नो वा क्रियत इत्याद्ययुक्तम् । प्रदीपादेर्भिन्नस्याभिन्नस्य वा विनाशस्थानङ्गीकारात् । कुतः । वाताद्युपघातेन प्रदीपादिः स्वयमेव विनष्टो लुप्त इत्युक्तत्वात् । स्वतोविनाशपक्षेऽपि भिन्नाभिन्न विकल्पयोः समानत्वेन स्वव्याघातित्वाच्च । किं च । भावानां विनाशं प्रत्यन्यानपेक्षित्वनियमे सौगतानामविद्यातृष्णा विनाशलक्षणो मोक्षःसन्तानोच्छित्तिलक्षणो' वा मोक्षो नाष्टाङ्गहेतुको भवेत् । दृष्टान्तस्य साध्यसाधनोभय विकलत्वं च । कुतः अन्त्यकारणसामग्यां स्वकार्य • बौद्धों का यह सब कथन अप्रमाण है । दीपक आदिका नाश हवा आदि से होता है । अतः उसे स्वभावतः विनाशी कहना ठीक नहीं । दीपक विनाश से भिन्न है या अभिन्न है ये दो पक्ष प्रस्तुत करना भी व्यर्थ है- दीपक ही जब विनष्ट या लुप्त हो जाता है तब उस के भिन्नत्व अभिन्नत्व की चर्चा कैसे सम्भव है? दूसरे, स्वभाव से दीपक का विनाश मानने में भी दीपक विनाश से भिन्न है या अभिन्न है आदि आपत्ति उठाई जा सकती है । तब तो दीपक का विनाश होता है यह कहना ही सम्भव नही होगा । अतः ये पक्ष प्रस्तुत करना व्यर्थ है । व्यावहारिक दृष्टि 1 से भी विनाश को स्वतः स्वाभाविक मानना उचित नहीं । अविद्या तथा तृष्णाके नाश को अथवा चित्त-सन्तान के उच्छेद को बौद्ध मोक्ष मानते हैं । यदि सभी नाश स्वभावतः होते हैं तो यह मोक्ष भी स्वभावत: होगा- सम्यक् दृष्टि आदि आठ अंगों को मोक्ष का कारण कहना व्यर्थ होगा । इस अनुमान में जो दृष्टान्त दिया है वह भी उपयुक्त नही हैअन्तिम क्षण की कारण सामग्री कार्य को स्वभावतः उप्तन्न करती है यह १ जीवन्मुक्तिः । २ परममुक्तिः । ३ अष्टाङ्गानि सम्यक्त्वं संज्ञा संज्ञी वाक्कायकर्मान्तर्व्यायामाजीवस्थितिसमाधिलक्षणानि । उत्तरेण व्याख्यानं करिष्यति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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