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________________ २५६ विश्वतत्त्वप्रकाशः [७८ स्याप्रतिपनत्वात् । अपूर्वपुरुषस्वरूपस्य प्रत्यक्षतो निश्चयेऽपि अयमेतद्विद्योपादाने समर्थः अयमेतत्कार्यकरणे समर्थ इति तत्सामर्थ्यस्य निश्चेतु. मशक्यत्वात् । ननु एकैकां विद्यामुपदिश्य तदग्रहणकौशलं दृष्टवा तत्तद्विद्योपादाने समर्थोयमिति निश्चीयते तथा एकैकं कार्य कुर्वीतेति प्रतिपाद्य तत्तत्कौशलं दृष्ट्वा तत्तत्कार्यकरणसमर्थोऽयमित्यपि निश्चीयत इति चेत् तर्हि उत्पन्न कार्य दृष्ट्वा कारणभूतं सामर्थ्यमनुमीयत इत्युक्तं स्यात् । तथा च तदेव सामर्थ्य शक्तिरित्युच्यते। ननु तत् सामर्थ्यमपि पदार्थानां स्वरूपमेव ततः पदार्थस्वरूपातिरिक्ता शक्तिर्नास्तीति चेन्न । प्रत्यक्षेण तत्पदार्थस्वरूपप्रतिपत्तौ सत्यामपि तत्सामर्थ्यप्रतिपस्यभावात् पदार्थस्वरूपमात्रादतिरिक्तं सामर्थ्यमिति निश्चीयते। ननु पदार्थानां किंचित् स्वरूपमिन्द्रियग्राह्यं किंचित् स्वरूपमतीन्द्रियग्राह्यमिति स्वरूपद्वयमस्तीति चेत् तर्हि यदेवेन्द्रियग्राह्यं न भवत्यतीन्द्रियकार्यजनकस्वरूपं तदेव पदार्थानां शक्तिरित्यभिधीयते। ततः पदार्थानामतीन्द्रियशक्तिसिद्धिस्तावन्मात्र एव पदार्थः प्रभाकरोक्तोऽङ्गीक्रियते। अन्यपदार्थानां यह आक्षेप अयोग्य है । मूंग, उडद, चना आदि का आँखों से प्रत्यक्ष ज्ञान होने पर उन में पकाये जाने की शक्ति है या नही यह ज्ञान नही होता - उस का ज्ञान तो तभी होता है जब वे पकाये जायें। इसी प्रकार किसी अपरिचित पुरुष को प्रत्यक्ष देखने पर यह अमुक कार्य कर सकेगा या नही इस का – उस की शक्ति का ज्ञान नही होता । जब वह पुरुष किसी विद्या को सीख लेता है या किसी काम को कर लेता है तभी उस विषय में उस की शक्ति का ज्ञान होता है। अतः कहा है कि उत्तरवर्ती कार्य से पूर्ववर्ती शक्ति का अनुमान होता है। यह शक्ति पदार्थ का स्वरूप ही है यह कहना योग्य नही क्यों कि पदार्थ का प्रत्यक्ष ज्ञान होनेपर भी शक्ति का ज्ञान नही होता। पदार्थ का कुछ स्वरूप इन्द्रियग्राह्य है तथा कुछ स्वरूप इन्द्रियों से ग्राह्य नही है यह कहा जाय तो उत्तर यह है कि इस इन्द्रियों से अग्राह्य स्वरूप को ही हम शक्ति कहते हैं - उसी से उत्तरवर्ती कार्य होते हैं। इस शक्ति को छोडकर अन्य जो पदार्थ प्राभाकर मत में कहे गये हैं वे ठीक __ १ अत एव शक्तिः कार्यानुमेया भवति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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