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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः [६८ तदेतत् सर्व गगनेन्दीवरमकरन्दबिन्दुसंदोहन्यावर्णनमिवाभाति । तेषां नयनरश्मीनामधिष्ठानाद् बहिर्निर्गमनपदार्थप्रकाशनयोरसंभवात् । तथा हि । नयनरश्मयः अधिष्ठानान्न बहिर्निर्गच्छन्ति इन्द्रियत्वात् त्वगिन्द्रियवदिति प्रमाणात् तेषां बहिर्निर्गमनाभावो निश्चीयते। यदि बहिर्निर्गच्छेयुस्तर्हि चक्षुषा उपलभ्येरन् , न चोपलभ्यन्ते, तस्मान निर्गच्छन्ति । अथ तेषां बहिर्निर्गमनेऽपि अनुभूतरूपवत्त्वात् चक्षुषा नोपलभ्यन्त इति चेन्न । तेषामनुभूतरूपवत्त्वे अर्थप्रकाशकत्वानुपपत्तेः। कुतः। विमता रश्मयः अर्थप्रकाशका न भवन्ति अनुभूतरूपत्वात् उष्णोदकान्तर्गततेजोरश्मिवदिति प्रमाणसद्भावात् । किं च। चक्षुस्तैजसत्वे सिद्धे पश्चात् तद्ररश्मीनां बहिर्निर्गमनमर्थसंयोगश्च परिकल्पयितुं शक्यते, न च तत्सिद्धिः कुतश्चिदपि संभवति। तैजसं चक्षुः रूपादीनां मध्ये रूपस्यैव प्रकाशकत्वात् प्रदीपवदिति तत्साधकानुमानस्य गोलकदर्पणादिभिःप्रागेव व्यभिचारप्रदर्शनेन निराकृतत्वात् । चक्षुस्तैजसं न भवति इन्द्रियत्वात् त्वगिन्द्रियवत्, ज्ञानोत्पत्तौ करणत्वात् मनोवदिति बाधकसद्भावाच्च । एतेन पटोऽयमिति चाक्षुषः प्रत्ययः इन्द्रियार्थसंयोगजः द्रव्यविषयत्वे सति बाह्येन्द्रियजत्वात् स्पर्शनपटप्रत्ययवदिति तदनुमानमपि निरस्तम्। चक्षुरिन्द्रियार्थसंयोगाभावस्य प्रत्यक्षेण निश्चितत्वात् . न्यायमत का यह सब विवरण निराधार है । पहला दोष यह है कि चक्षुकिरण चक्षु को छोडकर पदार्थ तक जायें यह संभव नहीं क्यों किं त्वचा आदि कोई भी इन्द्रिय अपने स्थान को छोडकर बाहर नही जाता । यदि चक्षु किरण चक्षु से पदार्थ तक जाते तो दिखाई देते । ये किरण पदार्थ तक तो जाते हैं किन्तु उन का रूप अव्यक्त होता है अतः दिखाई नही देते यह कथन भी ठीक नही । यदि उन का रूप अव्यक्त हो तो उष्ण पानी में स्थित अव्यक्त किरणों के समान ये किरण भी पदार्थ का ज्ञान नही करा सकते । दूसरा दोष यह है कि चक्षु तेजस नही है अतः उस से तेजोरूप चक्षुकिरण निकलना भी संभव नही है। चक्षु तैजस नही यह अभी स्पष्ट किया है त्वचा से पट का ज्ञान इन्द्रिय और पदार्थ के संयोग से होता है उसी प्रकार चक्षु से होनेवाला ज्ञान भी इन्द्रिय ... १ यथा स्पर्शनेन्द्रियेण पटप्रत्ययः इन्द्रियार्थसयोगजः। ..... www. wwwar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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