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________________ विश्वतत्त्वप्रकाश [६२[१२. सामान्यसमवाययोः नित्यत्वमिरासः।] तथा सामान्यस्य नित्यत्वमपि न पोभूपते। तथाहि । सामान्यमनित्यम् उत्पत्तिविनाशक्त्वात् पटादिवदिति । ननु सामान्यस्य उत्पत्तिविनाशवत्वमसिञ्चमिति वेश। सामान्यं स्वाश्रयोत्पत्ती उत्पद्यते आश्रितत्वात् अद्रव्यस्थात् परतन्वैकरूपत्वात् पटरूपादिवदिति । तथा सामान्य स्वाश्रयविनाशाद् विनश्यति परतन्त्रैकरूपत्वात् आश्रितत्वात् अद्रव्यत्वात् गन्धवदिति सामान्यस्य नित्यत्वमपि न जाघटीति। मनु अद्रव्यत्वादिति हेतोः समवायेन व्यभिचारान ततः साध्यसिद्धिः । कुतः। समवायस्य अद्रव्यत्वसद्भावेऽपि स्वाश्रयविनाशाद् विनाशा. भावात् स्वाश्रयोत्पस्या उत्पत्यभावाश्च । तदपि कुतः। तस्य समवायस्य मित्यत्वसर्वगतत्वैकत्वाभ्युपगमादिति चेन्न। समवायस्य नित्यत्वैकत्व सर्वगतत्वानुपपत्तेः। तथा हि। समवायः नित्यो न भवति असंख्यापरिमाणत्वे सति परतन्त्रैकरूपत्वात् रूपवत् । अथ समवायस्य परतन्त्रैकरूपत्वमसिद्धमिति चेन्न। समवायः परतन्त्रैकरूपः आश्रितत्वात् संबन्धत्वात् उत्पत्तिधिनाशवत्वात् संयोगवदिति समवायस्य परतन्त्रैकरूपत्वसिद्धेः । ननु तथापि समवायस्य उत्पत्तिविनाशवत्वमप्यसिद्धमिति चेन्न । समवायः स्वाश्रयोत्पत्तावुत्पद्यते परतन्त्रैकरूपत्वात् आश्रितत्वात् ६२. सामान्य का अनित्यत्व-सामान्य सर्वगत नही है उसी प्रकार नित्य भी नही है। सामान्य अपने व्यक्तियों पर आश्रित है, सामान्य द्रव्य नही है तथा परतन्त्र है अतः रूप, गन्ध आदि के समान व्यक्ति के उत्पन्न-विनष्ट होने पर सामान्य भी उत्पन्न-विनष्ट होता है। (इसी प्रकार वैशेषिको नें) समवाय को द्रव्य न मानते हुए एक, नित्य तथा सर्वगत माना है - व्यक्ति के उत्पन्न-विनष्ट होने पर वे समवाय को उत्पन्न-विनष्ट नही मानते। किन्तु उन का यह मत योग्य नही है। समवाय संख्या एवं परिमाण से भिन्न है तथा परतन्त्र है अतः रूप आदि के समान उसे भी अनित्य मानना चाहिए। समवाय को परतन्त्र इस लिए कहा है कि वह द्रव्य आदि पर आश्रित है, वह एक सम्बन्ध है तथा उत्पत्तिविनाश से युक्त है। समवाय जिस द्रव्य पर आश्रित है उस की उत्पत्ति के समय समवाय की उत्पत्ति तथा विनाश के समय समवाय का विनाश १ अनित्यत्वं साध्यम् । २ संख्यापरिमाणेनित्यगते वर्जयित्वा नित्यद्रव्यगता संख्या नित्यगतं परिमाणं नित्यम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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