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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः ५२ अक्षर हैं। अन्तिम पत्र प्राप्त न होने से इस के लेखनसमय का पता नही चलता । कागज तथा लिपि से यह प्रति भी १९ वीं सदी की ही प्रतीत होती है। यह भुलेश्वर मन्दिर की प्रति की ही प्रतिलिपि होगी क्यों कि दोनों में अशुद्धियां प्रायः समान हैं। ये दोनों प्रतियां बम्बई से डा. विद्याचन्द्रजी शाह द्वारा प्राप्त हुई थीं। इन की अशुद्धता के कारण पाठभेद की दृष्टि से इन का कोई उपयोग नहीं हो सका । इस ग्रन्थ की एक प्रति श्रीदेवेन्द्रकीर्ति ग्रन्थ भांडार, हुम्मच में है (क्र. १३९-१८४ ) इस में ४३ पत्र, प्रतिपत्र १० पंक्ति तथा प्रतिपक्ति १०३ अक्षर हैं। यह प्रति विजयनगर के राजा देवराय के समय शक १३६७=सन १४४५ में मडबिदुरे के पार्श्वनाथ चैत्यालय में समन्तभद्रदेव के सन्मुख वहां के श्रावकों ने लिखवाई थी। इस के पाठभेदों की सूचना श्रीमान् पं. के. भुजबलि शास्त्री के सहयोग से हमें मिल सकी तथा परिशिष्ट में हम ये पाठभेद दे रहे हैं। इन के अतिरिक्त इस ग्रन्थ की छह और प्रतियों का उल्लेख प्राप्त हुआ ( जिनरत्नकोश पृ. ३६०)। इन में दो प्रतियां चन्द्रप्रभ मन्दिर, भुलेश्वर, बम्बई की (क्र. १७६ तथा १८४) हैं। दो भट्टारकीय ग्रन्थभांडार, ईडर की (क्र. २३ तथा ५२ ) हैं। एक प्रति मूड बिदुरे के चारुकीर्तिमठ की (क्र. ६६६) है तथा एक ऐ० पन्नालाल सरस्वतीभवन, झालरापाटन की (क्र. ९६३) हैं। अन्तिम दो प्रतियां अपूर्ण हैं । पहली चार प्रतियां इस समय उक्त भांडारों में नही हैं ऐसा हमें पत्रव्यवहार से ज्ञात हुआ। ७. अनुवादशैली संस्कृत न्यायग्रन्थों के अनुवाद शब्दशः किये जायें तो बहुत क्लिष्ट होते है और पूर्ण अर्थ व्यक्त करनेके लिये विस्तार भी बहुत करना पडता है । अतः मूल पाठ के नीचे हम ने शब्दश: अनुवाद न दे कर सारानुवाद दिया है । लेखक की व्युक्तियों का समावेश इस अनुवाद में प्रायः पूर्ण रूप से मिलेगा। किन्तु जो भाग वाद विवाद के तन्त्र पर आधारित है - जिस में हेतु अथवा हेत्वाभास का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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