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विश्वतत्त्वप्रकाशः
नाख्यातिः। तस्मादख्यातिपक्षे सामानाधिकरण्यानुपपत्तिः। तथा तत्र प्रवर्तमानो रजतार्थी कुत्र प्रवर्तते स्मर्यमाणरजतांशे इदमंशे वा। न । तावदाद्यो विकल्पः अनियतदेशकालाकारतया स्मर्यमाणरजतेः प्रवृत्त्यदर्शनात् । नापि द्वितीयो विकल्पः इदमित्यनिर्दिष्टविशेष स्येच्छाप्रवृत्तिविषयत्वानुपपत्तेः। अथ स्मर्यमाणरजतस्येदमंशेन भेदाग्रहणात् तत्र प्रवर्तत इति चेन्न । तयोर्देशकालग्राहकज्ञानानां भेददर्शनेन तद्भेदस्यापि गृही. तत्वात् । ननु तयो देशकालग्राहकज्ञानेन भेदो न दृश्यत इति चेत् तर्हि एतद्देशकाले इदमंशग्राहकेणैव रजतांशो गृह्यत इत्यङ्गीकर्तव्यम् । तथा चान्यथाख्यातिरेव स्यानाख्यातिः। तस्मादख्यातिपक्षे प्रवृत्ति रपि नोपपनीपद्यते।
तथा नेदं रजतमिति बाधक प्रत्ययेन किं निषिध्यते स्मर्यमाणरजतांश इदमंशो वा । न तावदाद्यः पक्षः देशकालाकारानवच्छिन्नतया स्मर्यमाणस्य रजतस्य निषेधायोगात् । कुतस्तस्य क्वापि सद्भावसंभवात् । नापि द्वितीयः पक्षः इदमंशस्यापि निषेधायोगात् । कुतः बोधोत्तरकालेऽपि तस्य तत्र सद्भावदर्शनात्। ननु पुरोदेशे निवेशिवस्तुन्यारोपितं रजतं ही है ), अख्याति नही ( मिथ्या ज्ञान का अभाव नही)। इस चांदी के विषय में जो प्रवृत्ति ( उठाने की इच्छा) होती है वह भी — यह वुछ है' इस अस्पष्ट ज्ञान से सम्भव नही है, तथा चांदी के स्मरण से भी सम्भव नही है -- स्मरण भूतकाल की वस्तु का होता है अतः उस से वर्तमान काल में प्रवृत्ति सम्भव नही। प्रवृत्ति होती है इस से स्पष्ट है कि यह कुछ ' तथा ' चांदी' ये दोनों एक ही देशकाल में स्थित वस्तु के बोधक हैं। यह तथ्य भी अख्याति पक्ष के विरुद्ध है।
भ्रम दूर होने पर यह चांदी नही थी ' यह जो निषेधरूप ज्ञान होता है उस से चांदी के स्मरण का तो निषेध नही होता क्यों कि स्मरण भूतकालीन चांदी का है – उस में वर्तमानकाल की मर्यादा नही है। तथा — यह कुछ है ' इस अंश का भी निषेध नही होता क्यों कि
१ इदमिति प्रवृत्यदर्शनात् । २ रजतमेव इति निश्चयो न। ३ इदमंशे । ४ इदमंशरजतांशयोः। ५ सर्वथा शुक्तो रजताभावो न, प्राभाकरः सर्वथाभावं कथयति । ६ शुक्तौ इदं रजतमिति । ७ प्रवृत्त्यन्तरम्। ८ स्मरणांशस्य ।
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