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________________ १०८ विश्वतत्त्वप्रकाशः [३८परतः प्रामाण्यनिश्चयेऽप्यनवस्था भविष्यतीति चेन्न । परस्य' स्वतः प्रामाण्याङ्गीकारात् । एवमनुमानागमादीनामपि अभ्यासदशायां स्वतःप्रामाण्यनिश्चयः अनभ्यासदशायां परतः प्रामाण्यनिश्चय इति निरूपितं वेदि. तव्यम्। अप्रामाण्यपरिच्छित्तिस्तु सर्वेषां परत एव। शुक्तिरजतादिज्ञानस्य बाधकप्रत्यक्षेणैव अप्रामाण्यनिश्चयात् । एवं बहिर्विषयापेक्षया प्रामाण्याप्रामाण्योत्पत्तिपरिच्छित्ती न्यरूरुपाम । [ ३८. ज्ञानस्य स्वसंवेद्यत्वम् । ] स्वरूपविण्यापेक्षया सकलज्ञानानामप्रामाण्यं नास्त्येव । प्रामाण्योत्पत्तिपरिच्छित्ती तु स्वत एव भवतः। सकलज्ञानानां स्वसंवेदनत्वेन स्वरूपे संशयविपर्यासानध्यवसायाभावात् । ननु ज्ञानस्य स्वसंवेद्यत्वं नास्ति अनुमानविरोधात् । तथा हि । ज्ञानं न स्वसंवेद्यं शरीरात्मकत्वात् चर्मादिवदिति चेन्न। ज्ञानस्य शरीरात्मकत्वाभावेन हेतोरसिद्धत्वात् । तत् कथमिति चेत् ज्ञानं शरीरात्मकं न भवति चेतनत्वात् अमूर्तत्वात् होते अतः यह प्रामाण्यज्ञान स्वतः नही होता -- परत: होता है। इसी प्रकार अनुमान तथा आगम का प्रामाण्य भी सुपरिचित अवस्था में स्वतः तथा अपरिचित अवस्था में परत: ज्ञात होता है। अप्रामाण्य का ज्ञान सिर्फ परतः ही होता है - सीप को रजत मान लेने पर बाद में भ्रम दूर होने से उस ज्ञान का अप्रामाण्य ज्ञान होता है। इस प्रकार बाह्य विषयों की दृष्टि से प्रामाण्य के उत्पत्ति तथा ज्ञान का विचार किया। ३८. ज्ञान का स्वसंवेदन-अपने आत्मा के विषय में विचार किया जाय तो कोई भी ज्ञान अप्रमाण नही होता - आत्मा के विषय के ज्ञान के प्रामाण्य की उत्पत्ति और उस का ज्ञान स्वतः ही होता है। स्वसंवेदन में संशय या विपर्यास या अनिश्चय सम्भव नही होता। ज्ञान शरीरात्मक है अतः त्वचा आदि के समान वह भी स्वसंवेद्य नही है यह अनुमान युक्त नही - ज्ञान चेतन, अमूर्त, निरवयव, बाह्य इन्द्रियों से १ अनुमानादेः। २ अप्रामाण्यपरिच्छित्तिस्तु अभ्यासदायां स्वतः अनभ्यासदशायां परतः एव इति प्रमेयरत्नमालायामुक्तम् । ३ भावप्रमेयापेक्षायां प्रमाणाभासनिहवः। बहिःप्रमेयापेक्षायां प्रमाणं तन्निभं च ते॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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