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________________ विश्वतत्त्वप्रकाशः [ ३२एतेन वेदाः प्रमाणम् अविसंवादित्वात् आयुर्वेदवदित्यनुमानं प्रत्युक्तम् । अविसंवादित्वात् स्ववाच्यार्थाव्यभिचारित्वात् अबाध्यत्वादित्येकार्थत्वे. नोक्तदोषाणामत्रापि समानत्वात् । [३२. वेदानां पौरुषेयत्वम् । ] अथ वेदाः प्रमाणमपौरुषेयत्वात् संप्रतिपन्नलिंगादिवदिति प्रामाण्यं वेदानामिति चेन्न । वेदानां पौरुषेयत्वेनापौरुषेयत्वासिद्धेः। तथा हि वेदवाक्यानि पौरुषेयाणि वाक्यत्वात् कादम्बरीवाक्यवत् । अथ वेदवाक्यानां त्रिष्टुबनुष्ठबादिछन्दोनिबद्धत्वाद् वावयत्वमसिद्धमिति चेन्न। अपादस्य सपादस्य वा पदकदम्बकस्य वाक्यत्वेनाभिधानात् । _ 'सुप्तिङन्तचयो वाक्यं क्रिया वा कारकान्विता। (अमरकोश १-६-२) इति । अथ तथापि पौरुषेयत्वे स्मर्यमाणककत्वमुपाधिरिति चेन्न । तस्य उपाधिलक्षणाभावात् । कथमिति चेत् साधनाव्यापकत्वे सति साध्यव्यापी उपाधिरित्युपार्लक्षणम्। तल्लक्षण स्मयेमाणकतैकत्वस्य साध्यव्यापवाक्य हैं। इन सब बाधाओं के होते हुए वेदवाक्यों को अबाधित कैसे कहा जा सकता है ? इस अनुमान का उदाहरण भी सदोष है क्यों कि आयुर्वेद पूर्णतः अबाधित नही है, यदि होता तो उस से सब व्याधियां नियमतः दूर होती । अतः अबाधित होने से वेद प्रमाण हैं यह कथन निरर्थक है। ३२. वेद पौरुषेय है-वेद अपौरुषेय हैं अतः प्रमाण हैं इस कथन का पहले विचार किया है। उसी का पुन: विस्तार से परीक्षण करते हैं । वेद पौरुषेय हैं क्यों कि वे वाक्यों में निबद्ध हैं तथा वाक्य पौरुषेय ही होते हैं । वेद त्रिष्टुप, अनुष्टुप् आदि छन्दों में हैं अतः वे वाक्य नही हैं यह कहना भी उचित नही क्यों कि छन्दोबद्ध अथवा अबद्ध दोनों प्रकार के शब्दसमूहों को वाक्य कहते हैं। कहा भी है--विभक्ति तथा क्रिया के प्रत्ययों से युक्त शब्दों का समूह वाक्य कहलाता है, अथवा कारक से युक्त क्रिया को वाक्य कहते हैं।' वेदों में वाक्य तो हैं किन्तु उन के कर्ता का स्मरण नही है अतः वे _ १ वेदवाक्यानि पौरुषेयाणि वाक्यत्वात् अत्र वाक्यत्वात् हेतुना पौरुषेयत्वे साध्ये स्मर्यमाणकर्तृत्वम् उपाधिः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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