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________________ -२३] ईश्वरनिरासः त्कारिणा' बुद्धिमता प्रेरित सत् स्वकार्ये प्रवर्तते अचेतनत्वात् वास्यादिःचदिति चेन। तेनैव बुद्धिमता हेतोर्व्यभिचारात्। तस्याचेतनत्वेऽपि स्वकार्य प्रवर्तनात् । अथास्या'चेतनत्वं नास्तीति चेन्न । आत्मा स्वयमचेतनः चेतनासमवायाच्चेतन इति स्वसिद्धान्तविरोधात् । स्वानुमानबाधितत्वाञ्च - आमा अचेतनः अस्वसंवेद्यत्वात् पटादिवदिति। अथ चेतनासमवायेन बुद्धिमतोऽपि चेतनत्वात् तस्याचेतनत्वाभाव इति चेन्न । योगमते चेतनायाः कस्या अप्यसंभवात् । ननु बुद्धिश्चेतना भवतीति चेन्न। बुद्धिरचेतना अस्वसंवेद्यत्वात् पटादिवदिति तस्या अप्यचेतनत्वात्। तस्माददृष्टं स्वयोग्यतया जीवानां भोग भोग्यवर्ग च स्वयमेव संपादयतीति किमन्यपरिकल्पनया । अथ अदृष्टोत्पत्तावपि बुद्धिमता क; भवितव्यमिति चेत् स चास्त्येव । यः सदाचारी स पुण्यस्य कर्ता यो दुराचारी स पापस्य कर्ता इति । अथ ईश्वराराधनाविरोधने विहाय अपरयोः सदाचारनही। इस अनुमान पर मूलभूत आक्षेप यह भी है कि न्यायदर्शनके अनुसार आत्मा स्वयं अचेतन है-चेतना के समवाय सम्बन्ध से वह चेतन कहलाता है-फिर वह अदृष्ट को प्रेरणा कैसे दे सकेगा ? न्यायदर्शन में आमा को स्वसंवेद्य नही माना है इस से भी स्पष्ट होता है कि उस मत में आत्मा को अचेतन माना है - जो स्वसंवेद्य नही वह चेतन भी नही हो सकता। न्यायदर्शन में किसी भी तत्त्व को योग्य रीति से चेतन नही माना है । उस मत में बुद्धि भी स्वसंवेद्य नही है अतः वह भी चेतन नही है। इसलिए बद्धि के सम्बन्ध से भी आत्मा को चेतन नही कहा जा सकता । अतः अदृष्ट को प्रेरणा देने के लिए किसी ईश्वर की कल्पना निरर्थक है। अदृष्ट स्वयं अपनी योग्यता से जीवों को भोग आर उस के साधन प्राप्त कराता है। अदृष्ट के निर्माण के लिए भी बुद्धिमान कर्ता आवश्यक है यह आक्षेप भी ठीक नही। जो जीव सदाचारी है वह अपने पुण्यकर्म-अदृष्ट का कर्ता है तथा जो जीव दुराचारी है वह अपने पापकर्म-अदृष्ट का कर्ता है। अत: उस से भिन्न किसी कर्ता की कल्पना व्यर्थ है । ईश्वर की आराधना यही सदाचार है तथा १ अदृष्टसाक्षात्कारिणा। २ ईश्वरेण । ३ कुठारविशेषः। ४ अदृष्टम् । ५ ईश्वरस्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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