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चार्वाक-दर्शन-विचारः मानं व्यरीरचत्, जीवः कादाचित्कः विशेषगुणाधिकरणत्वात् पटादिवदिति, तदप्यसत् । हेतोर्वाद्यसिद्धत्वात्। कुत इति चेत् चार्वाकमते 'चैतन्यस्य विशेषगुणाधिकरणत्वाभावात्। भावे वा नित्यं चैतन्यं व्यणुकान्यातीन्द्रियत्वे सति विशेषगुणाधिकरणत्वात् परमाणुवदिति विपरीतप्रसाधकत्वाद् विरुद्धः । परमाणुभिर्व्यभिचारश्च । कुतः परमाणुषु रूपादिविशेषगुणाधिकरणत्वसद्भावेऽपि कादाचित्कत्वाभावात् । अथ व्यभिचारपरिहारार्थ परमाण्वन्यत्वे सतीति विशेषणमुपादीयत इति चेन्न । चार्वाक' मते चैतन्यस्य परमाण्वन्यत्वासिद्धेः । कुतः तस्य भूतात्मकत्वाङ्गीकारात् । तन्मते पृथिव्यप्तेजोवायुपरमाणूनामेव भूतशब्दवाच्यत्वमितरस्य' भूतकार्यत्वं, कार्यस्य कारणात्मकत्वमिति प्रतिपादनात् । तस्य चैतन्यस्य पृथग् द्रव्यत्वाङ्गीकारे नित्यं चैतन्यम् अद्वयणुकातीन्द्रियद्रव्यत्वात् परमाणु वदिति विपरीतसाधनाद् विरुद्धो हेतुः स्यात् । यदप्यन्यदनुमानं न्यरूरुपत्-जीवः कादाचित्कः द्रव्यत्वावान्तरसामान्यवत्वात् घटादिवदिति एक तो चार्वाक मत में जीवको विशेष गुणों का आधार माना नही है। दूसरे परमाणु रूपादि विशेष गुणों के आधार हैं किन्तु वे नित्य हैं। अत: विशेष गुणों का आधार जीव भी नित्य होना चाहिये। इस अनुमान में परमाणु का अपवाद करके भी यह दोष दूर करना सम्भव नही क्यों कि चार्वाक मत में पृथ्वी आदि परमाणुओंसे ही चैतन्य की उत्पत्ति मानी है। यदि चैतन्यको परमाणुओंसे भिन्न पृथक् द्रव्य मानें तो परमाणुके समान अतीन्द्रिय होनेसे चैतन्य को भी नित्य द्रव्य मानना होगा। जीव द्रव्यत्वसे भिन्न सामान्यसे युक्त है अतः अनित्य है।यह अनुमान भी दोषयुक्त है । परमाणुओं में भी द्रव्यत्व से भिन्न सामान्य (परमाणुत्व ) पाया जाता है किन्तु वे नित्य हैं। इसी तरह पर्वत भी द्रव्यत्व से भिन्न सामान्यसे युक्त हैं किन्तु वे भी नित्य हैं। इस लिये द्रव्यत्वसे भिन्न सामान्य से युक्त होने पर जीव को भी नित्य मानना चाहिये। जीव क्रियायुक्त है अतः घट इत्यादि के समान वह भी अनित्य है यह अनुमान
१ ज्ञानादिगुगः। २ परमाणुरहितत्वे सति। ३ चैतन्यं परमाणुभूतमेव नान्यत् इति चार्वाकमतम् । ४ चैतन्यस्य ।
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