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________________ प्रस्तावना [प्रकाशन --- प्रमाणनयतत्त्वरहस्य-श्रवज्ञान अमीवारा, बम्बई, १९३६; षड्दर्शनसमुच्चय टीका की प्रकाशनसूचना हरिभद्र के परिचय में दी है। ] ७२. भुवनसुन्दर-ये तपागच्छ के सोमसुन्दर सरि के शिष्य थे। तदनुसार पन्द्रहवां सदी के मध्य में उन का समय निश्चित है। वादीन्द्र नामक वैदिक विद्वान ने शब्द की नित्यना के विषय में महाविद्या नामक ग्रन्थ लिखा था। इस के खण्डन के लिए भुवनसुन्दर ने महा. विद्याविवृत्ति तथा महाविद्याविडम्बन ये ग्रन्थ लिखे। परब्रह्मोत्थापन यह उन की तीसरी रचना है-इस में ब्रह्मवाद का खण्डन किया है। - [प्रकाशन--- महाविद्याविडम्बन-गायकवाड ओरिएन्टल सीरीज, बडौदा, १९२०] ७३. रत्नमण्डन--ये भी तपागच्छ के सोमसुन्दरसरि के शिष्य थे। अतः भुवनसुन्दर के समान इन का समय भी पन्द्रहवीं सदी का मध्य निश्चित है। इन्हों ने जल्पकल्पलता नामक ग्रंन्थ लिखा है। २३ पृष्ठों की इस रचना में शंकराचार्य तथा माणिक्यसूरि के वाद का संक्षिप्त वर्णन है। । प्रकाशन- देवचन्द्र लालभाई पुस्तकोद्धार फंड, सूरत, १९१२] ७४. जिनसूर--ये सोमसुन्दर के प्रशिष्य तथा सुधानन्दन गणी के शिष्य थे। इन का एकमात्र रचना जलपमंजरो सं. १५२९ = सन १४७३ में पूर्ण हुई थी। [प्रकाशन---जैनधर्म प्रसारक सभा, भावनगर ] ७५. साधविजय---- ये तपागच्छ के जिनहर्षगणी के शिष्य थे। इन के दो ग्रंथ ज्ञात हैं। वाद विजय प्रकरण का विस्तार ७४८ श्लोकों १) यह वर्णन दे. ला. पुस्तकोद्धार फंड की सूची के अनुसार है। जिनरत्नकोष के अनुसार इस प्रन्थ में वादिदेवसूरि तथा एक नैयायिक विद्वान के वाद का वर्णन है तथा इस में तर्क, व्याकरण तथा काव्य ये तीन स्तवक हैं। हम मूल ग्रन्थ देख नहीं सके अतः कौनसा वर्णन ठोक है यह निश्चय नहीं हो सका । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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