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________________ प्रस्तावना .६७. ज्ञानचन्द्र-ये पूर्णिमागच्छ के आचार्य गुणचन्द्र के शिष्य थे। रत्नप्रभ की रत्नाकरावतारिका पर उन्हों ने टिप्पण लिखे हैं। गुणचन्द्र के समयानुसार ज्ञानचन्द्र का समय भी चौदहवीं सदी में निश्चित है। उन की अन्य कोई रचना ज्ञात नही है। ६८. जयसिंह-ये कृष्णर्षिगच्छ के आचार्य थे' । सारंग नामक वादी का इन्हों ने पराजय किया था। भासर्वज्ञ के प्रसिद्ध ग्रन्थ न्यायसार पर २९०० श्लोकों जितने विस्तार को न्यायतात्पर्यदीपिका नामक टीका उन्हों ने लिखी है। कमारपालचरित की रचना उन्हों ने सं. १४२२ = सन १३६६ में की थी अत: चौदहवीं सदी का मध्य यह उन का समय निश्चित है। उन्हों ने एक व्याकरण ग्रन्थ लिखा था ऐसा वर्णन भी मिलता है। [प्रकाशन- न्यायसारटीका- सं. सतीशचन्द्र विद्याभूषण, बिब्लॉथिका इन्डिका, कलकत्ता १९.१० ] ६९. धर्मभूषण-मूलसंघ बलात्कारगण के आचार्य धर्मभूषण वर्धमान भट्टारक के शिष्य थे। चौदहवीं सदी के उत्तरार्ध में विजयनगर के राज्य में उन का अच्छा प्रभाव था। राजा हरिहर के मंत्री इरुगप्प दण्डनायक उन के शिष्य थे तथा उन्होंने सन १३८५ में एक कंथुनाथमंदिर बनवाया था। राजा देवराय ( प्रथम ) भी उनका सम्मान करते थे। ___न्यायदीपिका यह धर्मभूषण की एकमात्र प्रकाशित कृति ८०० श्लोकों जितने विस्तार की है। इस के तीन प्रकाश हैं । प्रथम प्रकाश में प्रमाण का लक्षण, प्रामाण्य तथा इस विषय में अन्य मतों का निरसन ये विषय हैं। दूसरे प्रकाश में प्रत्यक्ष प्रमाण, उस के प्रकार तथा सर्वज्ञ की सिद्धि व निर्दोषता का वर्णन है। तीसरे प्रकाश में अनुमानादि परोक्षप्रमाण, नय और सप्तभंगी का वर्णन है । संक्षिप्त किन्तु सरल और विशद शैली के कारण जैन न्यायग्रंथों के प्रारम्भिक विद्यर्थी के लिए यह ग्रन्थ अति उपयोगी सिद्ध हुआ है। १) हम्मीर महाकाव्य तथा रम्भामंजरी नाटिका के कर्ता नयचन्द्र जयसिंह के प्रशिष्य थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001661
Book TitleVishwatattvaprakash
Original Sutra AuthorBhavsen Traivaidya
AuthorVidyadhar Johrapurkar
PublisherGulabchand Hirachand Doshi
Publication Year1964
Total Pages532
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Literature
File Size9 MB
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