SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 44 : तत्त्वार्थ सूत्र : अधो व मध्य लोक • द्विद्धिर्विष्कम्भा: पूर्वपूर्वपरिक्षेपिणो वलया-कृतयः ।।८।। • तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजनशतसहसविष्कम्भो जम्बूद्वीप: ।।९।। . ये सभी द्वीप-समुद्र दुगुने दुगुने विस्तार वाले, अपने से पहले के द्वीप या समुद्र को धेरे हुवे तथा वलयाकार अर्थात चूड़ी के आकार वाले होते हैं। उन सब (द्वीप-समुद्रों) के मध्य में मेरू पर्वत को धेरे हुवे एक लाख योजन व्यास वाला जम्बूद्वीप है। (८६) • तत्र भरतहैमवतहरिविदेहरम्यकहैरण्यवतैरावतवर्षा : क्षेत्राणि ।।१०।। • तद्विभाजिन : पूर्वपरायता हिमवन्महाहिमवन्निषध नीलरुक्मि शिखरिणो वर्षधरपर्वता: ।।११।। वहाँ (जम्बूद्वीप में) भरतवर्ष, हेमवतवर्ष, हरिवर्ष, विदेहवर्ष, रम्यकवर्ष, हिरण्यवर्ष व ऐरावतवर्ष नामक सात क्षेत्र हैं। उन क्षेत्रों को अलग करने वाले तथा पूर्व-पश्चिम विस्तार वाले हिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मी और शिखरी नामक छ: वषधर-पर्वत हैं। (१०-११) • द्विर्धातकीखण्डे ।।१२।। • पुष्करार्धे च ।।१३।। धातकीखण्ड में तथा पुष्करार्ध में (क्षेत्रों तश्च पर्वतों की संख्या भरतक्षेत्र की अपेक्षा) दुगुनी है। (१२-१३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001632
Book TitleTattvartha sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorD S Baya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2004
Total Pages242
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationBook_English, Philosophy, Tattvartha Sutra, J000, J001, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy