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42 : तत्त्वार्थ सूत्र : अधो व मध्य लोक
• परस्परोदीरितदुःखा: ।।४।। • संक्लिष्टासुरोदीरितदु:खाश्च प्राक्चतुर्थ्या: ।। ५ । । (वहाँ के नारक जीवों द्वारा) परस्पर दिये जाने वाले दु:ख वाले हैं
तथा चौथी भूमि से पहले अर्थात् पहली तीन भूमियों तक संक्लिष्ट असुरों द्वारा दिये जाने वाले दुःख वाले भी होते हैं।
• तेष्वेकत्रिसप्तदशसप्तदशद्वाविंशतित्रय स्त्रिंशत्सागरोपमा: सत्वानाम्
पर स्थिति: ।।६।। उन नारक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति (अधिकतम आयु) क्रमशः एक, । तीन, सात, दश, सत्रह, बावीस, और तेतीस सागरोपम होती है।
मध्य-लोक - • जम्बूद्वीपलवणोदय: शुभनामानो द्वीपसमुद्रा: ।।७।। जम्बूद्वीप आदि द्वीप एवं लवणसमुद्रादि समुद्र शुभ नाम वाले
द्वीप-समुद्र हैं।
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