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34 : तत्त्वार्थसूत्र : जीव-तत्त्व
• तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्या चतुर्थ्य: । । ४४।। किसी भी जीव के एक साथ शरीर दो -- तेजस कार्मण .. से लेकर
चार तक, विकल्प से, हो सकते हैं। (४४)
• निरुपभोगमन्त्यम् ।। ४५।। अन्तिम - कार्मण - शरीर निरुपभोग अर्थात सुख- दुःखादि के अनुभव
से रहित होता है। (४५)
• गर्भसर्छनजमाद्यम् ।। ४६ । । प्रथम - औदारिक - शरीर सम्मृर्छनजन्म तथा गर्भजन्म से ही पैदा
होता है। (४६)
• वैक्रियमोपपातिकम् ।।४७।। • लब्धिप्रत्ययम् च ।। ४८।। वेक्रिय-शरीर उपपातजन्म से तथा लब्धि से भी प्राप्त होता है।
(४७-४८)
• शुभं विशुद्धमव्याघाति चाहारकं चतुर्दशपूर्वधरस्यैव । । ४९।। आहारक शरीर शुभ-प्रशस्त पुदगलद्रव्य जन्य, विशुद्ध-निष्यापकार्यकारी,
और व्याधात-बाधा रहित तथा केवल चतुर्दश पूर्वधर मुनि द्वारा ही धार्य होता है। (४६)
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