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28 : तत्त्वार्थसूत्र : जीव-तत्त्व
• अनुश्रेणि गति: ।। २७ । गति अनुश्रेणि (सरलरेखा) में होती है। (२७)
• अविग्रहा जीवस्य ।। २८ । (मुच्यमान) जीव की गति अवक्र या ऋजु-सरल होती हैं। (२८)
• विगृहवती च संस्ारिण: प्राक् चतुर्य: ।।२९।। संसारी जीवों की गति सविग्रह भी होती है अर्थात् सरल और वक दोनों प्रकार की होती है । विग्रहगतियाँ या वक्रगतियाँ तीन (प्राक्चतुर् या चार से पहले) तक हो सकती हैं। (२६)
• एकसमयाऽविग्रहः ।।३०।। अविग्रहगति या सरलगति एक समयप्रमाण होती है। (३०)
• एकं द्वौऽनाहारकः ।। ३१ । । एक या दो समय तक (जीव) अनाहारक रहता है । (३१)
जन्म और योनि • सम्मूर्छनगर्भोपपाता जन्म ।। ३२। जन्म तीन प्रकार के. हैं - सम्मृर्छन, गर्भ और उपपात। (३२) ।
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