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________________ 26 : तत्त्वार्थसूत्र : जीव-तत्त्व • स्पर्शनरसनघाणचक्षुःश्रोत्राणि ।।२०।। इन्द्रियों के नाम स्पर्शन्, रसन्, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र हैं (२०) • स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तेषामा: ।। २१ । । स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण या रूप और शब्द ये पूर्वोक्त पाँच ज्ञानेन्द्रियों के . विषय है। (२१) • श्रुतमनिन्द्रियस्य ।।२२।। अनिन्द्रिय-मन का विषय श्रुत है । (२२) वाय्वन्तानामेकम् ।।२३।। वायुकाय तक (पृथ्वीकाय, अपकाय, वनस्पतिकाय व तेजस्काय सहित) के जीवों के केवल एक-एक इन्द्रिय है (२३) • कृमिपिपीलिकाभूमरमनुष्यादीनामेकैकवृद्धानि ।। २४।। कृमि , पिपीलिका-चींटी, भूमर व मनुष्य के कम से एक एक इन्द्रिय अधिक होती है। (२४) • संज्ञिन: समनस्का : ।।२५।। संज्ञी मन वाले होते हैं। (२५) अन्तराल-गति - • विगृहगतौ कर्मयोग: ।।२६।। (मृत्यु और पुनर्जन्म के बीच की अंतराल गति की) विग्रहगति में कर्मयोग (कार्मणयोग) होता है । वक्रगति (zig-zag motion) सूक्ष्म कामणशरीर द्वारा प्रयत्न (Activity of the fine karmic body) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001632
Book TitleTattvartha sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorD S Baya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2004
Total Pages242
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationBook_English, Philosophy, Tattvartha Sutra, J000, J001, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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