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22 : तत्त्वार्थसूत्र : जीव-तत्त्व
• जीवभव्याभव्यत्वादीनि च ।।७।। तीन प्रकार के परिणामिक भाव १. जीवत्व, २. भव्यत्व व ३.
अभव्यत्व हैं। (७)
जीव का लक्षण - • उपयोगोलक्षणम् ।।८।। जीवन का लक्षण ‘उपयोग या ज्ञान-शक्ति' है (८)
उपयोग - • स द्विविधोऽष्टचतुर्भेदः ।।९।। वह (उपयोग) दो प्रकार का है - १. साकार उपयोग तथा अनाकार
उपयोग । इनके क्रमशः आठ तथा चार अवान्तर भेद हैं (६)
जीव-राशी - • संसारिणो मुक्ताश्च ।।१०।।
जीव (आत्माएँ) दो प्रकार की है - संसारी और मुक्त (१०)
संसारी-जीव
• समनस्काऽमनस्का: ।।११।। (संसारी जीव) समनस्क और अमनस्क दो प्रकार के होते हैं।
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