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अध्याय-२
जीव-तत्त्व
प
हले अध्याय में मोक्ष मार्ग का कथन तथा सप्त तत्त्वों का सामान्य उल्लेख किया गया है । आगे के अध्यायों में इन्हीं का विशेष वर्णन किया जायगा । इसी श्रृंखला में इस अध्याय में शास्त्रकार जीव-तत्त्व के स्वरूप का कथन करते हैं।
पाँच भाव
• औपशमिकक्षायिकौ भावौ मिश्रश्च जीवस्य स्वतत्त्वमौदयिकपारिणामिकौ च ।। १
जीव के स्वाभाविक भाव पाँच हैं १. क्षायिक, २. औपशमिक, ३. क्षायोपशमिक, ४. औदयिक और ५. पारिणामिक । (१)
• द्विनवाष्टादशैकविंशतित्रिभेदा यथाक्रमम् ।।२।।
उक्त पाँचों भावों के अनुक्रम से दो (औपशमिक के), नौ ( क्षायिक के ), अठारह (क्षायोपशमिक के), इक्कीस ( औदयिक के ) तथा तीन ( पारिणामिक के ) भेद हैं । (२)
सम्यक्तवचारित्रे ।। ३८८
सम्यक्त्व और चारित्र - ये दो औपशमिक भाव के भेद हैं । (३)
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