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12 : तत्त्वार्थ सूत्र : मोक्ष-मार्ग
• मतिश्रुतयोनिबंध: सर्वद्रव्यष्वसर्वपर्यायेषु ।। २७ । ।
मतिज्ञान और श्रुतज्ञांन सभी द्रव्यों की परिमित (असर्व) पर्यायों को .
जानते हैं। (२७) • रूपिष्ववधे: ।। २८ ।
अवधिज्ञान की प्रवृत्ति केवल रूपी द्रव्यों की परिमित पर्यायों में होती
है। (२८)
• तदनन्तभागे मन: पर्यायस्य ।। २९ ।
उसके अनन्तवें भाग में मनःपर्यायज्ञान प्रवृत्ति करता है। (२६)
• सर्वद्रव्यपर्यायेषु केवलस्य ।।३०।।
एकमात्र केवलज्ञान की प्रवृत्ति ही सर्व-द्रव्यों की सर्व पर्यायों में होती
है। (३०)
• एकादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्ना चतुर्य: ।।३१।।
किसी आत्मा में एक साथ एक ज्ञान से लेकर चार ज्ञान तक हो
सकते हैं। (३१)
विपर्यय-ज्ञान - • मतिश्रुताऽवधयो विपर्ययश्च ।। ३२।।
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, और अवधिज्ञान के विपर्यय अर्थात् विपरीत ज्ञान
या अज्ञान (विभंगज्ञान) रूप भी होते है।
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