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________________ 10 : तत्त्वार्थ सूत्र : मोक्ष-मार्ग • द्विविधोऽवधिः ।। २१ । अवधिज्ञान दो प्रकार का होता है (भवप्रत्यय तथा यथोक्तनिमित्त)। • तत्र भवप्रत्ययो नारकदेवानाम् ।।२२।। उनमें से भवप्रत्यय (किसी योनि विशेष में जन्म लेने से स्वाभाविक रूप से होने वाला) अवधिज्ञान नारक जीवों तथा देवों को होता • यथोक्तनिमित्तः षड्विकल्प: शेषाणाम् ।।२३।। तथा शेष (मनुष्य और तिर्यञ्च) को छः प्रकार का' यथोक्तनिमित्त या क्षायोपशमिक (अवधिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से प्रकट होने वाला) अवधिज्ञान होता है। (२३) • ऋजुविपुलमती मन: पर्याय: ।।२४।। मनःपर्यायज्ञान के दो भेद हैं - ऋजुमति एवं विपुलमति। (२४) • विशुद्ध प्रतिपाताभ्याम् तद्विशेष: ।।२५।। इनमें से विशुद्धतर और अप्रतिपातिक (एकबार प्रकट होकर न जाना) होने के कारण विपुलमति मनःपर्यायज्ञान विशिष्ट है। (२५) . • विशुद्धिक्षेत्रस्वामिविषयेभ्योऽवधिमन: पर्याययोः ।।२६।। अवधिज्ञान और मनःपर्यायज्ञान में १. विशुद्धि, २. क्षेत्र, ३. स्वामी और ४. विषय की अपेक्षा से अन्तर है। (२६) छः प्रकार के अवधिज्ञान हैं - आनुगामी (जन्मांतर में बना रहने वाला), अननुगामी (मृत्यु होने पर लोप होने वाला), हीयमानक (घटने वाला), वर्द्धमानक, अवस्थित (आजन्म स्थिर व स्थाई) तथा अनवस्थित (अस्थिर व अस्थाई)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001632
Book TitleTattvartha sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorD S Baya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2004
Total Pages242
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationBook_English, Philosophy, Tattvartha Sutra, J000, J001, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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