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8 : तत्त्वार्थ सूत्र : मोक्ष-मार्ग
• अवगृहेहावायधारणा: ।।१५।।
मतिज्ञान के चार भेद हैं - १. अवग्रह, २. ईहा, ३. अवाय, और
४. धारणा। (१५)
बहुबहुविधक्षिप्रानिश्रितासंदिग्धधु वाणाम् सेताराणाम् ।।१६।।
प्रतिपक्ष सहित (सेताराणाम्) - १. बहु-अल्प, २. बहुविध-एकविध,
३. क्षिप्र-अक्षिप्र, ४, अनिश्रित-निश्रित, ५. असंदिग्द-संदिग्द्द, और ६. ध्रुव-अध्रुव - इन बारह प्रकार के पदार्थों का अवग्रह,
पारणा रूप ग्रहण अथवा ज्ञा है। (१६)
• अर्थस्य ।।१७।।
(अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा) - ये चारों अर्थ या वस्तु के
प्रकट रूप को ग्रहण करते हैं। (१७)
• व्य ञ्जनस्याऽवग्रहः ।।१८।। • न चक्षुरनिन्द्रियाभ्याम् ।।१९।। व्यञ्जन (उपकरणेन्द्रिय का वस्तु के साथ संयोग) होने पर अवग्रह ही
होता है किन्तु चक्षु और अनिन्द्रिय (मन) से व्यञ्जन होकर अवग्रह नहीं होता है। (१८-१६)
• श्रुतं मतिपूर्वं दूसेकद्वादशभेदम् ।।२०।। श्रुतज्ञान मतिज्ञान पूर्वक होता है । इसके दो, अनेक और बारह भेद
हैं। (२०)
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