________________
142 : तत्त्वार्थ सूत्र संवर व निर्जरा
परीषह
• मार्गाऽच्यवननिर्जरा परिसोढव्याः परीडूहाः ।।८।।
(मोक्ष) मार्ग से च्युत न होने व कर्मों के क्षय के लिये जो कष्ट सहन करने योग्य हों वे परीष्ठ हैं । (८)
• क्षुत्पिपासाशीतोष्णदंशमशकनाग्न्यारतिस्त्रीचर्यानिषद्याशय्याक्रोशवध - याचनाऽलाभरोगतृणस्पर्शमलसत्कारपुरस्कारप्रज्ञाज्ञानादर्शनानि ।
ये बावीस परीषह हैं क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंश-मशक, नग्नत्व, अरति, स्त्री, चर्या, निशद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मेल, सत्कार, पुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन । (६)
सूक्ष्मसं परायच्छद्मस्थवीतरागयोश्चतुर्दश ।। १० ।।
• एकादश जिने ।।११।।
• बादरसंपराये सर्वे ।।१२।।
• ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने ।।१३।।
सूक्ष्मयंपराय व छद्मस्थ वीतराग अवस्था में चौदह परीषह संभव हैं। जिन ( केवली) के ग्यारह परीषह संभव हैं। बादरसंपराय अवस्था में सभी परीषह संभव हैं। ज्ञानावरण से प्रज्ञा व अज्ञान परीषह होते हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org