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________________ 126 : तत्त्वार्थ सूत्र : बन्ध-तत्त्व प्रकृति-बन्ध • आयो ज्ञानदर्शनावरणवेदनीयमोहनीयायुष्कनामगोत्रान्तराया: ।।५।। प्रथम प्रकृतिबन्ध के ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र तथा अन्तराय ये आट रूप हैं। (५) • पंचनवद्वयष्टाविंशतिचतुर्द्विचत्वारिंशद्विपंचभेदा यथाक्रमम् ।।६।। इन आठों के अनुक्रम से पाँच, नौ, दो, अट्ठाईस, चार, बयालीस, दो __ और पाँच भेद हैं। (६) • मत्यादीनाम् ।।७।। पहले ज्ञानावरणीय-कर्म के मतिज्ञानावरणीय, श्रृतज्ञानावरणीय, अवधि ज्ञानावरणीय, मनःपर्यायज्ञानावरणीय तथा केवलज्ञानावरणीय रूपी पाँच उत्तर भेद हैं। (७) • चक्षुरचक्षुरवधिकेवलानाम् निद्रानिद्रानिदाप्रचलाचलाचलास्त्यान गृद्धिवेदनीयानि च ।।८।। दर्शनावरणीय कर्म के चक्षुदर्शनावरणीय, अचक्षु-दर्शनावरणीय, अवधि-दर्शनावरणीय, केवल-दर्शनावरणीय, निद्रावेदनीय दर्शना-- वरणीय, निद्रा--निद्रा-वेदनीय-दर्शनावरणीय, प्रचलावेदनीय-दर्शनावरणीय, प्रचला-प्रचलावेदनीय-दर्शनावरणीय तथा स्त्यानगृद्धिदर्शनावरणीय, ये नो उत्तर भेद हैं। (८.) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001632
Book TitleTattvartha sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorD S Baya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2004
Total Pages242
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationBook_English, Philosophy, Tattvartha Sutra, J000, J001, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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