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अध्याय-८
बन्ध-तत्त्व
त्त्वों के वर्णन क्रम में छठे अध्याय में आसव-तत्त्व का वर्णन करने के उपरान्त अब शास्त्रकार इस अध्याय में बन्ध-तत्त्व का वर्णन करते हैं ।
त
तत्त्वार्थ सूत्र
बन्धहेतु -
• मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतवः ।।१।
मिथ्या-दर्शन, अविरति, प्रमाद, कषाय तथा योग ये बन्ध के हेतु या कारण हैं । (१)
बन्ध - स्वरूप
• सकषायत्वाज्जीव: कर्मणो योग्यान् पुद्गलानादत्ते (२००
सः बन्धः (३८८
कषाय के कारण जीव कर्म- पुद्गलों को ग्रहण करता है । वही बन्ध है । (२-३)
बन्ध के प्रकार
• प्रकृतिस्थित्यनुभावप्रदेशस्तद्विधयः । । ४
प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभावबन्ध तथा प्रदेशबन्ध ये बन्ध के चार प्रकार हैं । (४)
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