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________________ 114 : तत्त्वार्थ सूत्र : व्रत और भावनाएँ ३. अचौर्यव्रत स्तेनप्रयो गतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमही नाधिकमानोन्मान प्रतिरूपकव्यवहारा: ।।२२।। ( तीसरे अचौर्याणुव्रत के पाँच अतिचार हैं ) चोरी करने के लिये प्रेरित करना, चोरी की वस्तु लेना, राज्य द्वारा आरोपित कर की चोरी करना, कम या ज्यादा नापना- तोलना तथा नकली वस्तु या मुद्रा प्रचलित करना । (२२) ४. ब्रह्मचर्यव्रत - • परविवाहकरणे त्वरपरिगृहीताऽपरिगृही तागमनाऽनङ् गक्रीड़ातीकामाभिनिवेश: ।।२३ ( चाथे ब्रह्मचर्यणुव्रत के पाँच अतिचार हैं) परविबाहकरण, अपरिगृहीतागमन, अनङ्गक्रीड़ा तथा इत्वरपरिगृहीतागमन, तीव्रकामाभिनिवेश। (२३) ५. परिग्रह परिमाणव्रत • क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमाः । । २४५ क्षेत्र- वास्तु (पाँचवें परिग्रह परिमाणाणुव्रत के पाँच अतिचार हैं) ( ज़मीन - भवन), चाँदी - सोना, धन-धान्य, दासी दास, वस्त्र - पात्र के निश्चित किये गए परिमाण का उल्लंधन करना । (२४) दिग्विरतिव्रत ६. • ऊर्ध्वाधस्तिर्यग्व्यतिक्रमक्षेत्रवृद्धिस्मृत्यन्तर्धानानि ।। २५ । । प्रथम गुणव्रत दिविरति के पाँच अतिचार हैं परिमाणातिक्रम, अधो-दिशा परिमाणातिक्रम, परिमाणातिक्रम, मर्यादित क्षेत्र में वृद्धि तथा की हुई मर्यादा को भूल जाना । (२५) Jain Education International ऊर्ध्व-दिशा तिर्यग्दिशा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001632
Book TitleTattvartha sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorD S Baya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2004
Total Pages242
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationBook_English, Philosophy, Tattvartha Sutra, J000, J001, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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