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________________ 82 : तत्त्वार्थ सूत्र : अजीव तत्त्व न जघन्यगणानाम् ।।३३।। गुणसाम्ये सदृशानाम् ।। ३४।। द्वयधिकादिगणानाम् तु । ( ३५ ।। बन्धे समाधिको पारिणामिकौ ।। ३६ । यदि ये गुण जधन्य ( न्यूनतम) हों तो (बन्ध) नहीं होता है । यदि सदृश गुण (स्निग्छ - स्निग्छ व रूक्ष - रूक्ष ) समान मात्रा में हों तो भी (बन्ध ) नहीं होता है । सदृश गुण होने पर ( एक का गुण दूसरे से) दो आदि ( ३, ४, ५ . . संख्यात्, असंख्यात्) अंश अधिक होने पर ही बन्ध होता है । बन्ध होने पर सम या अधिक ( अंश वाले) गुण दूसरे गुण को परिणत कर लेते हैं । (३२-३६) द्रव्य-लक्षण • • • गुणपर्यायवद् द्रव्यम् ।। ३७।। १७ द्रव्य गुण ̈ और पर्याय वाला है । ( ३७) काल का द्रव्यत्व • कालश्चेत्येके ।। ३८ ।। • सोऽनन्तसमय: ( ६३९।। कोई आचार्य काल को भी द्रव्य मानते हो ।" वह (काल) अनन्त समय-पर्याय वाला है । ( ३८-३९) 17 18 19 द्रव्य की पर्यायें निरन्तर परिवर्तनशील हैं; द्रव्य की इस पर्याय परिवर्तन की शक्ति ही उसका गुण है I यह श्वेताम्बर मान्यता है जिसमें काल का स्वतन्त्र द्रव्यत्व सर्वमान्य नहीं है ! दिगम्बर मान्यतानुसार काल छठे द्रव्य के रूप में मान्य है । काल की वर्तमान पर्याय तो एक ही है किन्तु इसकी गत और अनागत पर्यायें तो अनन्त हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001632
Book TitleTattvartha sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorD S Baya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2004
Total Pages242
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationBook_English, Philosophy, Tattvartha Sutra, J000, J001, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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