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80 : तत्त्वार्थ सूत्र : अजीव तत्त्व
• भेदादणु: ।।२।। • भेदसंघाताभ्याम् चाक्षुषाः ।।२८।। अणु की उत्पत्ति (केवल) टूटने से होती है। चाक्षुष स्कन्ध भेद व
संधात दोनों से बनते हैं। (२७-२८)
सत् का स्वरूप • उत्पादव्ययधौव्ययुक्तं सत् ।।२९।। जो उत्पाद-उत्पत्ति, व्यय-विनाश एवं ध्रौव्य-नित्यता से युक्त है वही
सत् है। (२६) • तद्भावाव्ययं नित्यम् ।।३०।। जो (स्व)भाव से अव्यय हो अर्थात् च्युत न हो वही नित्य है। (३०) सत् का अनेकान्त स्वरूप • अर्पितानर्पितसिद्धे . ।।३१।। अर्पित - मुख्यत्व की अपेक्षा से एवं अनर्पित - गौणत्व के अपेक्षान्तर
से सत् (वस्तु) के अनेक गुणों में से विरोधी गुणों की सिद्धि
होती है। (३१) पौद्गलिक बन्ध के हेतु • स्निग्धरूक्षत्वाद् बन्धः ।। ३२।। स्निग्धत्व और रूक्षत्व से (पुद्गलों का परस्पर) बन्ध होता है।
16 जब कोई
अचाक्षष या न दिखाई देने वाला स्कन्ध चाक्षष या दृश्यमान बनता है, तो भेद द्वारा उसकी अदृश्य पर्याय वाले पुद्गलों का निर्गमन तथा संधात द्वारा अन्य
दृश्य पर्याय वाले पुद्गलों का आगमन दोनों ही आवश्यक होते हैं। When an invisible aggregate is transformed into a visible one, both,
division and aggregation are essential as through division it sheds the particles with invisible modes and through aggregation it combines with others of the visible modes.
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