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76 : तत्त्वार्थ सूत्र : अजीव तत्त्व
• धर्माऽधर्मयो: कृत्सने ।।१३।। • एकप्रदेशादिषु भाज्य: पुद्गलानाम् ।।१४।। • असंख्येयभागादिषु जीवानाम् ।।१५।। • प्रदेशसंहारविसर्गाभ्याम् प्रदीपवत् ।।१६।। धर्म और अधर्म द्रव्यों की स्थिति समग्र लोकाकाश में है। पुद्गल द्रव्य
की स्थिति लोकाकाश के एक या एकाधिक प्रदेशों में विकल्प से है। जीवों की स्थिति लोकाकाश के असंख्यातवें भाग आदि (या उससे अधिक) में होती है। (क्योंकि) प्रदीप-दीपक के प्रकाश की भाँति उनका संकोच व विस्तार होता है। (१३-१६)
धर्म, अधर्म व आकाश - • गतिस्थित्युपगृहो धर्माधर्मयोरुपकारः ।।१७।। धर्म और अधर्म द्रव्यों का कार्य क्रमशः (जीव व पुद्गल की) गति व
स्थिति में (उदासीन) निमित्त होना है (१७)
• आकाशस्यावगाहः । (१८।। अवकाश प्रदान करना आकाश-द्रव्य का कार्य है। (१८)
पुद्गल के कार्य - • शरीरवाङ्मन: प्राणापाना: पुद्गलानाम् ।।१९।। • सुखदु:खजीवितमरणोपगृहाश्च ।। २०।। शरीर, वाणी, मन, प्राण एवं अपान (श्वास) ये पुद्गल के
उपकार-कार्य हैं। सुख, दुःख, जीवन और मरण भी (पुद्गल के कार्य हे) (१६-२०)
15 That part of infinite space-matter (ākāśa) occupied by other forms of
matter is known as Lokākāśa or universal spacc.
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