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74 : तत्त्वार्थ सूत्र : अजीव तत्त्व
द्रव्य का प्रदेशत्व - असंख्येया: प्रदेश धर्माधर्मयोः ।।७।। जीवस्य च ।।८।। आकाशस्यानन्ताः ।।९।। संख्येयाऽसंख्येयाश्च पुद्गलानाम् ।।१०।। नाणो: ।।११।।
धर्मास्तिकाय व अधर्मास्तिकाय के प्रदेश असंख्यात् हैं।
• जीव भी (असंख्यात् प्रदेशी है) । • आकाश के (प्रदेश) अनन्त हैं।
पुद्गगल-द्रव्य के प्रदेश संख्यात, असंख्यात व अनन्त हैं। अणु का (प्रदेश) नहीं है । अर्थात् अणु अप्रदेशी' है। (७-११)
द्रव्य की स्थिति-क्षेत्र • लोकाकाशेऽवगाहः ।।१२।।
अधर्म, पुद्गल व जीव) लोकाकाश'२ में स्थित
(आधेय) द्रव्य (ध
हैं। (१२)
10 यद्यपि जो भी विद्यमान पदार्थ है वह स्थान (प्रदेश) तो घेरेगा ही, किंतु अणु पदार्थ
का इतना अनन्तवाँ सूक्ष्मतम कण है कि व्यवहार में इसे अप्रदेशी कहा जा सकता
द्रव्य दो प्रकार के हैं - आधार-द्रव्य तथा आधेय-द्रव्य । आकाश स्वयं का तथा अन्य द्रव्यों का आधार है । अन्य द्रव्य आकाश-स्थित होने से उसके आधोय-द्रव्य
अनन्त आकाश का वह भाग जिसमें अन्य द्रव्य भी स्थित हों, लोकाकाश है; आकाश का शेष भाग अलोकाकाश कहलाता है।
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