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________________ 60 : तत्त्वार्थ सूत्र : ऊर्ध्व लोक • औपपातिकमनुष्येभ्यः शेषास्तिर्यगयोनयः ।। २८ ।। ओपपातिकों (उपपात-जन्म धारण करने वाले - नारक व देव) और मनुष्यों के अतिरिक्त शेष सभी प्राणी तिर्यच योनी वाले हैं। (२८) देवों की आयु-स्थिति - • स्थिति: ।।२९॥ (अब) स्थिति-आयु (का वर्णन करते हैं)। (२६) उत्कृष्ट स्थिति - • भवनेषु दक्षिणार्धाधिपतीनाम् पल्योपममध्यर्धम् ।।३०।। • शेषाणाम् पादोने ।। ३१ । । • असुरेन्द्रयोः सागरोपममधिकम् च ।। ३२।। भवनों में (भवनवासी देवों के) दक्षिणार्द्ध के इन्द्रों की (उत्कृष्ट) स्थिति डेढ़ पल्योपम की है । शेष इन्द्रों की (उत्कृष्ट स्थिति) पोने दो (पल्योपमं की) है। दो असुरेन्द्रों की (उत्कृष्ट स्थिति) क्रमश: एक सागरोपम तथा (एक सागरोपम से) कुछ अधिक की है। (३०-३२) • सैधर्मादिषु यथाक्रमम् ।।३३।। • सागरोपमे ।।३४। • अधिके च ।। ३५।। सोधर्मादि वैमानिक देवलोकों में (उत्कृष्ट) स्थिति निम्नोक्त क्रम से है:-.. • प्रथम (सौधर्म कल्प स्वर्ग में देवों की उत्कृष्ट आयु स्थिति) दो सागरोपम की हे, • (ऐशान में) कुछ अधिक दो सागरोपम की है। (३३-३५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001632
Book TitleTattvartha sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorD S Baya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2004
Total Pages242
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationBook_English, Philosophy, Tattvartha Sutra, J000, J001, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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