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58 : तत्त्वार्थ सूत्र : ऊर्ध्व लोक
• पीतपद्मशुक्ललेश्या द्वित्रिशषेषु ।। २३।।
पहले दो वैमानिक स्वर्गों के देव पीत-लेश्या वाले, आगे के तीन स्वर्गों के देव पद्म- लेश्या वाले तथा शेष स्वर्गों के देव शुक्ल-लेश्या वाले हैं। (२३)
कल्प स्वर्ग
• प्राग्ग्रैवेयकेभ्यः कल्पा : ( ( २४
ग्रैवेयकों से पहले (के स्वर्ग) कल्प (स्वर्ग) हैं । (२४)
लोकान्तिक देव
• ब्रह्मलोकालया लोकान्तिकाः ।। २५ । ।
• सारस्वतादित्यवरुणगर्द तो यतुषिताव्याबाधमरुतो ऽरिष्टाश्च
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।। २६ ।।
जिन देवों का आलय - स्थान ब्रह्मलोक है वे लोकान्तिक देव ( कहलाते ) हैं । लोकान्तिक देव सारस्वत, आदित्य, वहि, अरुण, गर्दतोय, तुषित, अव्याबाध, मरुत और अरिष्ट हैं । ( २५-२६)
अनुत्तर विमान के देव
• विजयादिषु द्विचरमाः ।। २७ ।।
विजयादि (विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित) अनुत्तरविमानों में ( निवास करने वाले) देव द्विचरम ( सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरविमान के देव एकचरम होते हैं) दो बार मनुष्य जन्म धारण करके मोक्ष प्राप्त करने वाले होते हैं । (२७)
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