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________________ 56 : तत्त्वार्थ सूत्र : ऊर्ध्व लोक • उपर्युपरि । ।१९।। • सौद्दमशानसानत्कुमारमाहेन्द्रब्रह्मलोकलान्तकमहाशुक्रसहसारेष्वानत प्राणतयोरारणाच्युतयोर्नवसु गैदेयकेषु विजयवैजयन्त जयन्ताऽपराजितेषु सवार्थसिद्धे च ।।२०।। ये देव ऊपर ऊपर रहते हैं। उन (वैमानिक देवों के निवास) सोधर्म, ऐशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, व अच्युत नामक बारह कल्पोपपन्न विमानों में तथा नौ ग्रेवेयक सहित विजय, वेजयन्त, जयन्त, अपराजित व सवार्थसिद्ध नामक चोदह कल्पातीत विमानों में हैं। (१६-२०) (दिगम्बर मान्यता सोलह कल्प-विमान मानती है। उनमें ब्रह्मोत्तर, कापिष्ट, शुक्र व शतार नाम के चार कल्प अधिक हैं, जो क्रमशः छठे, आठवें, नवमें व ग्यारहवें क्रम पर आते हैं।) देवों की असमानता - • स्थितिप्रभावसुखलेश्याविशुद्धीन्द्रियावधिविषयतोऽद्दिका: ।। २१ । । • रतिशरीरपरिगृहाभिमानतो हीना: ।। २२।। ऊपर ऊपर के स्वर्गों के देव उनके नीचे के स्वर्गों के देवों से स्थिति (आयु), प्रभाव, सुख, द्युति, लेश्याविशुद्धि, इन्द्रिय-विषय एवं अवधि-विषय में उत्तरोत्तर अधिक तथा गति, शरीर, परिग्रह एवं अभिमान में उत्तरोत्तर हीन होते हैं । (२१-२२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ,
SR No.001632
Book TitleTattvartha sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorD S Baya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2004
Total Pages242
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationBook_English, Philosophy, Tattvartha Sutra, J000, J001, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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