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________________ 54 : तत्त्वार्थ सूत्र: ऊर्ध्व लोक व्यन्तर देव व्यन्तरा: पिशाचा: ( । १२ किन्नर - किंपुरुष-महोरग - गान्धर्व-यक्ष- राक्षस-भूत किन्नर, किंपुरुष, महोरग, गान्धर्व, यक्ष, राक्षस, भूत, तथा पिशाच व्यन्तर निकाय के देव हैं । (१२) ज्योतिष्क देव • ज्योतिष्का : सूर्यचन्द्रमसो ग्रहनक्षत्रप्रकीर्णतारकाश्च ।। १३ ।। सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारागण- ये ज्योतिष्क निकाय के देव हैं। • मेरूप्रदक्षिणा नित्यगतयो नृलोके ।।१४।। ● तत्कृतः कालविभाग: ।।१५।। बहिरवस्थिताः । ।१६।। सभी ज्योतिष्क निकाय के देव) मनुष्यलोक में मेरू पर्वत की प्रदक्षिणा करनेवाले तथा निरन्तर गतिशील हैं। काल विभाग इन चरज्योतिष्कों द्वारा किया हुवा है। ज्योतिष्कनिकाय मध्यलोक के बाहर स्थित हैं । (१४-१६) वैमानिक देव M • वैमानिका: ।।१७।। • कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च ।। १८ । (चतुर्थ निकाय के देव) विमानों में रहने वाले वैमानिक देव हैं। वे कल्पोपपन्न और कल्पातीत रूप हैं (१७-१८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001632
Book TitleTattvartha sutra
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
AuthorD S Baya
PublisherAgam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
Publication Year2004
Total Pages242
LanguageEnglish, Sanskrit
ClassificationBook_English, Philosophy, Tattvartha Sutra, J000, J001, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size10 MB
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