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________________ लब्धिसार-क्षपणासार मुनि भूतबलि यति वृषभ प्रमुख भए तिनि हूनें तीन ग्रंथ कीने सुखकार हैं। प्रथम भवल अर दूजो है जयधवल तीजो महाधवल प्रसिद्ध नाम धार हैं। प्रलोक तो हैं लाखो अर अर्थ है कठिन घनो तातें बुद्धिमान विनु जानै नाहि सार है । दक्षिणमें गोम्मट निकटि मृलविद्रपुर तहां ठीक कीए ग्रंथ पाइए अवार है ॥१०॥ दक्षिण दिशामें नेमिचंद्र आदि मुनिराज भये तिनहूँ के भयो तिनकों अभ्यास है। जैनी राजमल्ल राजा ताको मंत्री आप राजा भयो है चामुंडराय तहां ताको वास हैं। तीहि कीनी प्रश्न तब धवलादि शास्त्रनिके अनुसारि कीयो इस ग्रंथको उजास है। बंधकादि संग्रहते नाम पंचसंग्रह है अथवा गोम्मटसार नामको प्रकाश है ॥११॥ दोहा बहुत सूत्रके करन नेमिचंद गुनधार । मुख्यपने यो प्रथके कहिए है करतार ॥ १२॥ चोपई कनकनंदि फुनि माधवचन्द । प्रमुख भए मुनि बहु गुन कंद । तिनहूकौ है यामैं सीर । सूत्र कितेक किए गंभीर ॥ १३ ॥ मौक्तिक रत्न सूत्रमें पोय । गूथ्या ग्रंथ हार सम सोय । अर्थ प्रकाशक अमल अप । हृदय धरे सो है सुखरूप ॥ १४ ॥ नेमिचंद जिन शुभपद धारि । जैसे तीर्थ कियो गिरिनारि । तैसें नेमिचंद मुनिराय । ग्रंथ कियो है तरण उपाय ॥ १५ ॥ देशनिमें सुप्रसिद्ध महान । पूज्य भयो है यात्रा थान । यामैं गमन करै जो कोय । उच्चपना पावत है सोय ॥ १६ ॥ गमन करणकौं गली समान । कर्णाटक टीका अमलान । ताकौं अनुसरती शुभ भई । टीका सुंदर संस्कृतमई ॥ १७ ॥ केशववर्णी बुद्धि निधान । संस्कृत टीकाकार सुजान । मार्ग कियो 'तिहिं जुत विस्तार । जहं स्थूलनिकों भी संचार ॥ १८ ॥ हमहू करिके तहां :प्रवेश । पायो तारन कारण देश । चितवन करि अर्थनिकों सार । जैसे कीनो बहुरि बिचारि ॥ १९ ॥ संस्कृत संदृष्टिनिको ज्ञान । नहि जिनके ते बाल समान । गमन करणका अति तरफरें । बल विनु नाहि पदनिकों धरें ॥ २० ॥ तिनि जीवनिकों गमन उपाय । भाषा टीका दई वनाय । वाहन सम यहु सुगम उपाव । याकरि सफल करो निज भाव ॥ २१ ॥ पूर्व कहे सिद्धान्त महान । तिनहीमें जयधवल प्रधान । ताका पंच दशम अधिकार। ताकरि करके अर्थ विचार ॥ २२ ॥ नेमिचंद नामा मुनिराय । लब्धिसार श्रुतसार बनाय । वर सम्यक्त्व चरित्र वखान । करिके प्रगट किए गुणथान ॥ २३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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