SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५४ ) एकका एक, दुसरेके च्यारि, तीसरेके सोलह, चौथेके चौसठि १।४ । १६ । ६४ ए प्रक्षेप । बहरि इनिका जोड पिच्यासी ताका भाग मिश्रपिडकौं दीए वीस पाए, ताकरि अपने अपने प्रक्षेप जे विसवे तिनकौं गुण पहिलेका वीस दूसरेका असी तीसराका तीनसै वीस चौथाका बारहसै असी द्रव्य आवे हैं। असैं ही गुणश्रेणीका आयामविर्षे जेता द्रव्य देना सो तौ मिश्रपिंड जानना। बहुरि गुणश्रेणिआयामके प्रथम समयकी एक शलाका, द्वितीय समयकी तात असंख्यातगुणी शलाका, तृतीय समयकी तातें असंख्यातगुणी शलाका इसही प्रकार असंख्यातगुणा क्रम लीएं ताका अंत समय पर्यंतकी शलाका जाननी । इसका नाम प्रक्षेपक है। इनिकौं जोडें जो प्रमाण आवै ताका भाग तिस सर्व द्रव्यकौं दीए जो प्रमाण होइ तिसकरि अपनी अपनी शलाकानिका प्रमाणकौं गुण गुणश्रेणीआयामके प्रथमादि समयसंबंधी निषेकनि विर्षे द्रव्य देनेका प्रमाण आवै है। इतना इतना द्रव्य गुणश्रेणीआयामके प्रथमादि निषेकनि विर्षे मिलाइए है। बहुरि जैसे ही गुणसंक्रमविर्षे विधान जानना । इहां जो गुण संक्रमकरि अन्य प्रकृतिरूप परिणमावने योग्य सर्व द्रव्य सो मिश्रपिंड अर गणसंक्रमकालके प्रथमादि समय संबंधी एक आदि क्रमतें असंख्यातगुणी शलाका सो प्रक्षेपक है। इनिके जोडका भाग मिश्रपिंडकौं देइ लब्धकरि अपनी अपनी शलाकाको गुण गुणसंक्रमकालका प्रथमादि समयनिविर्षे अन्य प्रकृतिरूप परिणमावने योग्य द्रव्यका प्रमाण आवै है। याही प्रकार अन्यत्र भी यथासंभव मिश्रपिंड वा प्रक्षेपनिका प्रमाण जानि जैसा जहां संभवै तैसा तहां जानना । या प्रकार द्रव्य देना आदि विषै विधान कह्या । अब सत्ताविर्ष जे निषेक पाइए है तिनके द्रव्य जानने का विधान कहिए है विवक्षित कोई एक समयवि जो सत्तारूप कर्म परमाणूनिका द्रव्य है तहां स्थितिसत्त्वका प्रथम समय वर्तमान है । तीहि विर्षे उदय आवने योग्य जो द्रव्य सो प्रथम निषेकका द्रव्य है। ताका प्रमाण तो संपूर्ण समयप्रबद्धमात्र है । काहेत ? सो कहिए है पूर्व जे समय समय प्रति समयप्रबद्ध बांधे तिनिविर्षे जिस समयप्रबद्धका एक ह निषेक पूर्वै गल्या नाही ताका तो प्रथम निषेक इस समय विर्षे उदय होने योग्य है । जाका एक निषेक पूर्व गल्या ताका द्वितीय निषेक इस समय विर्षे उदय होने योग्य है । इसही क्रमतें जाका एक निषेक विना अवशेष सर्व निषेक गले ताका अंत निषेक इस समय विर्षे उदय होने योग्य है । औसे एक एक समयप्रबद्धका एक एक निषेक मिलि इस विवक्षित समयवि. उदय आवने योग्य संपूर्ण समयप्रबद्धमात्र द्रव्य भया सो सत्ताका प्रथम निषेक है। जैसे एक समयप्रबद्धका पांचसै बारह, दूसरेका च्यारिसै असी इत्यादि निषेकनिका द्रव्य मिलि तिरेसठिसै होइ । बहरि स्थितिसत्त्वका दूसरे समयविर्षे उदय आवने योग्य द्रव्य प्रथम निषेक घाटि समयप्रबद्ध मात्र है। कैसे ? सो कहिए है प्रथम समयवि. जिस समयप्रबद्धका प्रथम निषेक गल ताका तो दूसरा निषेक है। अर जाका दूसरा निषेक गलै ताका तीसरा निषेक इत्यादि क्रमतें दूसरे समय उदय आवने योग्य निषेक हैं सो सर्व मिलि प्रथम निषेक घाटि समयप्रबद्धमात्र हो हैं । सो यह सत्ताका द्वितीय निषेक है। इहां प्रथम निषेकमात्र चय घटता भया । जैस एक समयप्रबद्धका च्यारिसै असी, दूसरेका च्यारिसै अठतालीस इत्यादि निषेकनिका द्रव्य मिलि सत्तावनसै अठ्यासी होइ । इहां प्रथम समयविष जाका अन्त निषेक गल्या ताका तो कोई निषेक . रह्या नाहीं। अर प्रथम निषेक जाका इस दूसरे समयविष उदय होयगा असा समयप्रबद्ध न ब_गा तब वाका सत्त्व होइगा, इस समयविष है नाहीं, तातै सत्ताके द्वितीय निषेकका प्रमाण पूर्वोक्त जानना। बहुरि स्थितिसत्त्वका तृतीय समयविष उदय आवने योग्य प्रथम द्वितीय निषेक घाटि समयप्रबद्धमात्र द्रव्य है। कैस ? सो कहिए है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy