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अर्थसंदृष्टि अधिकार
५९१
नाम
लोभ
माया
मान
क्रोध
तृतीय संग्रह
व १२४ ओ४ख २४ a:ख २४
|
व १२ ४
ओ ४ ख २४ a= ख २४
व १२ ४ व १२ ४ १३ ओ४ ख २४ | ओ ४ ख २४
E ख १४ | Eख २४
|
द्वितीय संग्रह
| व १२ ४
ओ ४ ख २४ 3E ख२४
व १२ ४ | ओ ४ ख २४ | a= ख २४
व १२ ४ ओ ४ ख २४
Eख २४
| व १२ ४
ओ ४ ख २४ a:ख २४
। |व १२ ४
।
प्रथम संग्रह
व १२ ४
व १२ ४
|व १२ ४
I
| ओ ४ ख २४ |
E ख २४
ओ ४ ख २४
=ख २४
! ओ ४ ख २४
=ख २४
ओ ४ ख २४
=ख २४
बहुरि अपकृष्ट द्रव्यवि तैसे ही संदृष्टि कोएं सर्व मध्यम खंड द्रव्यकी ऐसी
व १२ ४ हो है । बहुरि इस च्यारि प्रकार द्रव्य देनेका विधान जानि तहां यथा संभव संदृष्टि
ओ ४ ख
ख जाननी। बहुरि यह दीया द्रव्य पूर्व कृष्टि” अपूर्वकृष्टिविर्षे असंख्यात भाग वृद्धि रूप दीजिए। है। सो ऐसे ग्यारह स्थान हैं। बहुरि अपूर्व कृष्टितै पूर्व कृष्टिविर्षे असंख्यात भाग हानि लीएं द्रव्य दीजिए है सो ऐसें बारह स्थान हैं। अवशेष स्थाननिविर्षे अनंतभाग हानि लीएं द्रव्य दीजिए है सो इनकी तेवीस ऊँट कूटनिके समान रचना हो हैं। सो यथा संभव जाननी। बहुरि इहां अपूर्व कृष्टिनिकी रचना ऐसी है
पृ० नं० ५९१ (क) में देखो इहां नीचें लोभकी प्रथम कृष्टि ताविर्षे नोचैं अपूर्व कृष्टिनिविर्षे अधस्तन कृष्टि दीया ताकी संदृष्टि ऐसी (८) बहुरि तिनके ऊपरि पूर्वकृष्टि तिनविर्षे समपट्टिकारूप द्रव्य विशेष सहित था ताकी संदृष्टि ऐसी - ताविर्षे अधस्तन शीर्ष विष द्रव्य दीया ताकी संदृष्टि
ऐसी
ऐसें भएं पूर्व अपूर्व कृष्टिनिकी समपट्टिका भई ऐसे ही लोभकी द्वितीयादि
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