SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 656
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थदृष्टि अधिकार ५७७ व । १२ - हो है । बहुरि कषायनिके द्रव्यविषै साधिक चौथा भागमात्र लोभका द्रव्य है । २ किंचिदून चौथा भागमात्र मायाका तातैं किंचिदून क्रोधका तातै किंचिदून मानका द्रव्य है । इहां इस च्यारिका भागहारकौं पूर्व दोयका भागहार करि गुण आठका भागहार हो है । बहुरि stant द्रव्यविषै नोकषायनिका द्रव्य समच्छेदकरि मिलाएं क्रोधका द्रव्य पांचगुणा हो है । तिनकी दृष्टि ऐसी - लो हुरिहां लोभ द्रव्यकौं अपकर्षण माया मा क्रो I व १२ व ८ १२ = ५ ८ 1 भागहारका भाग दीएं अपकृष्ट द्रव्य ऐसा व १२ । तहां लोभकी पूर्व स्पर्धककी वर्गणाको अपकर्षण ओ १२ - व ८ १२ = व ८ भागहारका भाग दीएं ऐसा व । ऐसें ही दोय घाटि अपकर्षण भागमात्र पूर्व स्पर्धककी वर्गणानिका ओ अपकर्षण कीया द्रव्य ऐसा व ओ २ । यामैं आदि वर्गणाका अपकृष्ट द्रव्य मिलावनेकौं दोय ओ घाटिक जायगा एक घाटि कोएं ऐसा व । ओ १ | इतना द्रव्य ग्रहि अपूर्वं स्पर्धककी आदि ओ वर्गणा निपजाइए है। सो यहु पूर्व स्पधंकको आदि पर्गंणाके समान है । जातें तहां भी तिस वर्गणा अपकर्षण भागहारका भाग देइ एक भाग ग्रहैं बहुभागमात्र द्रव्य अवशेष रहै है । सो इतना ही हु है । बहुरि अपूर्व स्पर्धकनिका प्रमाण ऐसा ९ अर एक स्पर्घक विष वर्गणानिका ओ । a प्रमाण ऐसा [४] इनकों परस्पर गुणें सर्व अपूर्वं स्वर्धकनिकी वर्गणाका प्रमाण ऐसा ९ । ४ भया । ओ । 2 इहां स्पर्धक शलाकाकी सहनानी नवका अंक अर वर्गणा शलाकाकी च्यारिका अंक तिनकों परस्पर गुण गुणहानि होइ, ताकी सहनानी आठका अंक कीएं ऐसी ८ संदृष्टि हो है । याकरि ओ a ति आदि वर्गणा गुणें समपट्टिका धन ऐसा व ओ - १ । ८ हो है । बहुरि पूर्व स्पर्धक की ओ । ओ । a - afrat दो हानिका भाग दीएं ताका चय होइ । तातैं दूना अपूर्व स्पर्धकनिकी aणानिवि चयका प्रमाण है । तातें तिस आदि वर्गणाकों एक गुणहानिकी सहनानी आठका अंक ताका भाग दीएं इहां चय ऐसा व । ओ १ | याक आदि उत्तर स्थापि अपूर्व स्पर्धक वर्गणा ओ । ८ प्रमाणकौं गच्छ स्थापि जोडें जो चय धन भया ताक मिलावनेके अर्थि तिस समपट्टिका घनकी संदृष्टि उपरि साधिककी संदृष्टि कीएं ऐसा व । ओ - १ । ८ । बहुरि याके गुणकार भागहारकों ओ । ओ । a ७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy