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________________ ( ५० ) कर्म प्रकृतिनिका कथनविषै तिनिकी परमाणूनिका नाम द्रव्य है। जैसे बंघरूप परमाणुनिका नाम बंध द्रव्य है, सस्वरूप परमाणूनिका नाम सस्वद्रव्य है। स्थिति कांडके निषेकनिको परमाणुनिका नाम कांडक द्रव्य है। तहां प्रथमादि फालिनिके परमाणुनिका नाम प्रथमादि फालिनिका द्रव्य है। ऊपरिके वा नीर्षके निषेक छोडि वीचिके केते इक निषेकनिका अभाव करनेरूप अंतरकरण हो है । तहां अभाव करनेरूप निषेकनिके परमाणूनिका नाम अंतरकरण द्रव्य है । उदय आवनेकौं अयोग्य कीए परमाणूनिका नाम उपशम द्रव्य है । विवक्षित सत्तारूप निषेक या तिस विषै नवीन परमाणू मिलाई तिनका नाम दीयमान द्रव्य है । आगे सत्तारूप थीं अर ए नवीन मिलीं इनि सब परमाणूनि के समूहका नाम दृश्यमान द्रव्य है। असे हो अन्यत्र जानना | बहुरि कांडक नाम पर्वका है अर जैसे साठानिवि पैलो हो है तैसें मर्यादारूप स्थानका नाम पर्व है । जैसे स्थितिविषै घटनेकरि मर्यादारूप स्थान भया ताका नाम स्थिति कांडक है । अनुभागविषै घटनेकरि मर्यादा रूप स्थान भया ताका नाम अनुभाग कांडक है । बहुरि अनंतानुबंधी की स्थितिविषै च्यारि स्थान कहे तहां च्यारि पर्व कहें। बहुरि अपकृष्ट द्रव्यके मिलावनेके जहां तीन स्थान है तहां तीन पर्व कहे। जैसे ही । । अन्यत्र जानना । बहुरि आयाम नाम लंबाईका है सो कालके समय भी युगपत् न हो हैं, तातं कालका प्रमाणविध आयाम संज्ञा कहिए है । वा कहीं ऊपरि ऊपरि रचना होइ तहां तिनिका प्रमाणविषै भी आयाम संज्ञा कहिए है । जैसे स्थिति के प्रमाणका नाम स्थिति आयाम है । स्थिति कांडकके निषेकनिके प्रमाणका नाम स्थिति कांडक आयाम है । अंतरकरणविषै जितने निषेकनिका अभाव कीया है ताका नाम अंतरायाम है । गुण श्रेणिके निषेकनिके प्रमाणका नाम गुणश्रेणि आयाम है असे ही अन्यत्र जानना । बहुरि गुण नाम गुणकारका है तहां गुणकारकी पंक्ति लीएं जहां निषेकनिविषै द्रव्य दीजिए ताका नाम गुणश्रेणि है। समय समय गुणकार लीएं विवक्षित प्रकृतिको परमाणू अन्य प्रकृतिरूप संक्रमण करें ताका नाम गुणसंक्रम है । गुणकार लीएं हानि कहिए हीनता घटवारी जहां होइ ताका नाम गुणहानि है । जैसे ही अन्यत्र जानना । बहुरि कर्मस्थितिविषै निषेकनिका प्रमाणरूप स्थिति कहिए है-जैसे विवक्षित निषेकनिके ऊपरिवर्ती निषेकनिका नाम उपरितन स्थिति है। गुणश्रेणिका कथनविषै तो गुणश्रेणि आयाम ऊपरिवर्ती निषेकनिका नाम उपरितन स्थिति है। केवल उदीरणाका कपनविषे उदयावली ऊपरिवर्ती निषेकनिका नाम उपरितन स्थिति है इत्यादि जानना । बहुरि विवक्षित प्रमाण लीएं नीचले निषेकनिका नाम प्रथम स्थिति है। बहुरि उपरिवर्ती सर्वस्थितिके - निषेकनिका नाम द्वितीय स्थिति है जैसे अंतरायामते नीचले नियेकनिका नाम प्रथम स्थिति, ऊपरले निषेकनिका नाम द्वितीय स्थिति है । अथवा संज्वलन क्रोधका जेता प्रमाण लोएं प्रथम स्थिति स्थापी ताके निषेकनिका नाम प्रथम स्थिति है । अवशेष सर्व स्थिति के निषेकनिका नाम द्वितीय स्थिति है । इत्यादि जानना । बहुरि समुदायरूप एक क्रिया विषै जुदा जुदा खंडकरि विशेष करना ताका नाम फालि है । जैसे कांटक द्रव्यका कांडकोल्करण काल विषे अन्यत्र प्राप्त करना तहां प्रथम समय प्राप्त कीया सो कांडककी प्रथम फालि, द्वितीय समयविधं प्राप्त कीया सो द्वितीय फालि, इत्यादि बहुरि जैसे ही उपशमन कालवि पहले समय जेता द्रव्य उपशमाया सो उपशमकी प्रथम फालि, द्वितीय समय उपक्षमाया सो ताकी द्वितीय फालि इत्यादि से ही अन्यत्र जानना । बहुरि अन्य निषेकके परमाणू अन्य निषेक विषै मिलाइए तहां मिलावना वा देना वा निक्षेपण करना कहिए । जिनि निषेकनिविषै दोएं ते निषेक निक्षेपणरूप जानने । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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