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________________ ५६४ लब्धिसार-क्षपणासार भागका भाग देइ बहुभाग ऐसे ४ प तिनिके आधे प्रमाण लोएं तौ कृष्टिकरण कालका अंत खप प aa समयविर्षे कीनी जे आदिकी जघन्यादि कृष्टि ते अनुदयरूप हैं । बहुरि आधे ऐसे1१० ४ प याविषै रह्या एक भाग ऐसा ४ मिलावनेकौं अगिला गुणकारविर्षे दोयकरि ख पाप ख प प २ aa aa भाजित एक घाटि था तहां दोयकरि भाजित एक अधिक कोएं ऐसा ४ प प्रमाण लोएं a ख प प२ aa कृष्टिकरण कालका प्रथम समयविर्षं कोनी अंतकी उत्कृष्टपर्यंत कृष्टिनै अनुदयरूप हो है। इहां पल्यका असंख्यातवां भागकों सहनानी पांचका अंक कोएं जो एक भाग ऐसा४ । था ताकौं पांचका भाग देइ बहुभागके आधे ऐसे ४ । २ अर इनविर्षे एक अवशेष भाग खप खप। ५ a मिलाएं ऐसे हो है ४ । ३ ऐसे सूक्ष्भसांपरायका प्रथम समयविर्षे उदय अनुदय कृष्टिनिका प्रमाण ख प। ५ श जानना । इहां रचना ऐसी अन्यनिक . . . प्रथानिक ख 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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