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________________ 3.0 प४ ५ ५ अर्थसंदृष्टि अधिकार ५३९ बहुरि उदयावली अवशेष रहैं एक एक निषेक क्रमतें गालि, क्षायिक सम्यग्दृष्टी हो है। बहुरि इहां कालका अल्पबहुत्वको संदृष्टि सुगम है। सो उपशम सम्यक्त्वविौं अल्पवहुत्व कह्या तिस प्रकार वा अन्य यथासंभव प्रकारकरि कथनके अनुसारि तेतीस अल्पवहुत्वके पदनिविणे ऐसी संदृष्टि हो है२ १२२५/२२५ ४२१५ ४ ५२ ११२ १२४२ १२४ ४२ १२४ ४ ४२ १ २ ४ ४ ४ ४ अपवर्तित २१ २२४ । २१४४ । २१४४४ | २२४४४४ ८प-व८ प अपवर्तित aaal aaa १० १० पपaप पa aaalaala५५५५५५५ प साप साल सा अं को २ सा अं को २ सा अं को २ सा अं को २ - ८१ ८ ४४४ ४४ ४ ऐसें क्षायिक सम्यक्त्व अधिकारविौं संदृष्टि जाननी अथ देशचारित्राधिकारविौं संदृष्टि कहिए है-तहां अधःप्रवृत्त देशसंयतविणे चतुःस्थान पतित वृद्धि हानि लीएं अपकर्षण द्रव्य हो है। तहां सत्त्व द्रव्य ऐसा- स ३ । १२ताको सातका भाग दीएं एक कम ताकौं अपकर्षण भागहारका भाग दीएं अपकृष्ट द्रव्य ऐसास ३ । १२-ताकों असंख्यात संख्यातका भाग देइ एक अधिक असंख्यात संख्यात करि गुण ७ ओ असंख्यात संख्यात भागवृद्धि हो है। अर ताहीकौं संख्यात असंख्यातकरि गुण संख्यात असंख्यात गुणवृद्धि हो है । अर ताहीकौं असंख्यात संख्यातका भाग देइ अर एक घाटि अमंख्यात संख्यातकरि गुण असंख्यात संख्यात भागहानि हो है। अर ताहीकों संख्यात असंख्यातका भाग दीएं संख्यात असंख्यात गुणहानि हो है । तिनकी संदृष्टि ऐसी१- १-। स । १२-a | स । । १२-a स । । । १२-शस । । १२-a ७। ओ| a ७ । ओ। १ । । ओ |७| ओ स । ।१२ - ७ । ओ स।३।१२-१ ७। ओ।१ स| |१२- ७ | ओ १ स। ।१२७1a1a बहुरि तहां कालके अल्पबहुत्वकी संदृष्टि पूर्वोक्त प्रकारकरि वा अन्य यथा संभव प्रकार करि कथनके अनुसारि अठारह पदनिविणें ऐसी जाननी २१ । २।५ । २१५ । ४ २५।५ । ४ । ५।२१।१ २शश४ २१२।४।४ २१२।४।४।४ । २२।२२ २ १२२२४ प ४ ४। ४ प सा । ७ । सा अंको २ । सा अं को २ सा अं को २ सा अंको २ ४।४।४ ४।४ ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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