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________________ अर्थसंदृष्टि अधिकार गले निषेक अर कृतकृत्य कालके निषेक विना अवशेष चरम फालिका द्रव्य ऐसा-स । १२ - ७ । ख । १७ ताक असंख्यातगुणा पल्यके वर्गमूलका भाग देइ एक भाग प्रथम पर्वविषै असंख्यातगुणा क्रमकरि देना । तहां पिच्यासीका भाग देइ एकादिकरि गुण प्रथमादि निषेकनिकी संदृष्टि हो है । बहुरि बहुभाग द्वितीय पर्वविषै देना । ताकी संदृष्टि ऐसी 7 स।१२- 1 मू ७ । ख । १७ । मू । 8 स 181 १२ - । ६४ ७ ख १७ । मू । ३ । ८५ १६ ० 0 ४ स । ३ । १२-१ ७ । ख । १७ । मू । ३ । ८५ हां गुणश्रेणिका द्विचरम समय पर्यंत अधिक क्रमरूप लीककरि ऊपरि अंत निषेककी जुदो रचनाकरि संदृष्टि करी है । ताके आगे दीया द्रव्य लिख्या है । बहुरि कृतकृत्य वेदक काल गुणशीर्षके संख्यात बहुभागमात्र ऐसा २ । ३ तहां सम्यक्त्वमोहका सत्त्व ऐसा ४|४ ܝ ܕ स | 3 | १२ – ताक अपकर्षण भागहारका भाग देइ एक भाग उदयावलीविषै बाह्य निषेकनितें ७ । ख । १७ ६८ ५३७ ग्रहिता पल्यका असंख्यातवां भागका भाग देइ एक भाग उदयावलीविषै असंख्यातगुणा क्रमकरि देना । तहां पिच्यासीका भाग देइ एकादिकरि गुण प्रथमादि निषेक हो हैं । बहुरि बहुभाग उपरितन स्थितिविषै अतिस्थापनावली छोडि द्रव्य देना । तहां ताके द्रव्यका गुणकारविषै एक होनकों न गिणि अपवर्तन कीएं द्रव्य ऐसा स १२- ताकौं गच्छ अंतर्मुहूर्त मात्र ऐसा २ ताका ७ | ख | १७ | ओ Jain Education International अर एक घाटि गच्छका आधाकरि हीन दो गुणहानिका भाग दीएं चय धन होइ । ताकौं दो गुणहानिकर गुण प्रथम निषेक अर गुणकारविषै एक एक क्रमतें घटाएं अन्तविषै गच्छमात्र घटाएं द्वितीयादि निषेक होंइ तिनकी रचना ऐसी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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