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________________ अर्थसंदृष्टि अधिकार ५२५ ताक एक एक निषेधरि तिनिरूप परिनमावै है । ऐसें अनंतानुबंधोका विसंयोजन करि दर्शनमोहकी क्षपणा प्रारंभ है। तहां अन्य किया होइ जहां असंख्यात समयप्रवद्धकी उदीरणा हो है तहां सम्यक्त्वमोहनीका द्रव्य ऐसा स १२ • याकौं अपकर्षण भागहारका भाग दोएं ऐसा ७ । ख | १७ | गु याकौं पल्यका असंख्यातवां भागका भाग दोएं बहुभाग उवरितन स्थिति विषै स १२ - ७ | ख | १७ | गु | ओ दीया शेष एक भागका पल्यकों असंख्यातवां भागका भाग दीएं बहुभाग गुणश्रेणिविषै एक भाग उदयावलीविषै दोंया तहां संदृष्टि ऐसी उपरितन स्थिति गुणश्रेणी आयाम उदयावली Jain Education International स १२ - प ७ । ख | १७ | गु । ओ । प । a ܟ ܕ स १२ -प । प ७ । ख । १७ । गु । ओ । पप a a ܟ ܕ ܟ ܕ इहां बहुभागविषै एक घाटि भागहारका गुणकार संपूर्ण भागहारका भाग जानना | बहुरि सम्यक्त्वमोहन की अष्ट वर्षमात्र स्थिति जिस ससमय हो है तिस समय विषै क्रिया करे है । मिश्र सम्यक्त्वमोहका अंत फालिका द्रव्य किंचिदून द्वयर्ध गुणहानिमात्र है । कैसैं ? गु ताविषै उच्छिष्टावलीविना जन्य द्रव्यकौं मिश्र मिथ्यात्वका द्रव्य ऐसा - स १२ १ - स । १२ प १ ७ । ख । गु । ओ । पप a a ܩܕ ܕ ७ | ख | १७ | गु a ܩܐ १ a ܫ ܕ - मोहनीविषै निक्षेपण कीएं मिश्रमोहका द्रव्य ऐसा स १२. इहां दर्शनमोहका द्रव्यके आगे ७ । ख । १७ किंचिदूनकी सहनानी ऐसी ( - ) जाननी । बहुरि याका असंख्यातवां भागमात्र इतर कांडक द्रव्य सम्यक्त्वमोहनीविषै संक्रमण भएं अवशेष बहुभागमात्र मिश्रमोहका चरम कांडककी चरम फालिका द्रव्य ऐसा सa । १२ - बहुरि सम्यक्त्वमोहका द्रव्य ऐसा - स ७ । ख | १७ | १२ - इहां भी इतर कांडक ७ | ख | १७ | गु For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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