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________________ ५२२ लब्धिसार-क्षपणासार नाय पिथ्यात्व सम्यक्त्वमोहमी निषेक | स १२-गु द्रव्य स ११२-2 ।७ख १७ गु स १२-१ ७ख १७ गु ७ख १७ अनुभाग । वा९ना व९ ना ९ ना ख ख इहां ऊपरि मिथ्यात्व मिश्र सम्यक्त्व प्रकृतिके निषेक क्रमहीन रूप हैं तिनकी संदृष्टि करि नीचें तिनके द्रव्यका प्रमाण लिख्या। तहां किंचिदून द्वयर्ध गुणहानिगुणित समयप्रबद्धमात्र सर्व कर्म परमाणूनिका प्रमाण ऐसा स a १२ - ताकौं सातका भाग दीएं मोहका द्रव्य होइ। ताकौं अनंतका भाग दोएं सर्वघाती द्रव्य होइ। ताकौं सतरहका भाग दीए दर्शनमोहका द्रव्य ऐसा स a १२ - होइ । याकौं गुणसंक्रम भागहारका भाग दीएं तहां बहुभागमात्र मिथ्यात्वका द्रव्य ७। ख। १७ होइ । बहरि तिस एक भागविणे एक अधिक असंख्यात था ताविर्ष एक रूप जुदा स्थापि अवशेष मिश्रमोहका द्रव्य होइ अर जुदा स्थाप्या एक रूपमात्र सम्यक्त्वमोहका द्रव्य हो है । इहां संदृष्टिविषै गुणकार कैसैं भए ? ताका मौकौं नीकै ज्ञान न भया है, विशेष ज्ञानी जानियो । बहरि ताके नीचे अनुभागका प्रमाण लिख्या सो जघन्य वर्गणाकों एक गुणहानिविर्ष स्पर्धक संख्याकी संदृष्टि नवका अंक ताकरि अर नाना गुणहानिकरि गुणे तामैं तीन अधिक कोएं उत्कृष्टरूप मिथ्यात्वका अनुभाग ऐसा–व । ९ । ना। ताकौं अनंतका भाग दीएं मिश्रका, ताकौं अनंतका भाग दीएं सम्यक्त्वमोहका अनुभाग हो है। बहुरि गुणसंक्रम कालविर्षे मिथ्यात्वका द्रव्य मिश्रमोह सम्यक्त्वमोहरूप परिणमै है ताकी संदृष्टि ऐसी पृष्ठ १५ ( क ) में देखो। इहां गुणकार संक्रमका प्रयम समयविर्षे पूर्वोक्त प्रकार मिथ्यात्व द्रव्य ऐसा स a १२याकौं गुणसंक्रमका भाग दीएं सम्यक्त्वमोहरूप परिणम्या द्रव्य हो है। तात असंख्यातगुणा मिश्ररूप परिणम्या द्रव्य है। तातै द्वितोय समयविष सम्यक्त्वरूप परिणम्या द्रव्य असंख्यातगुणा है। सो इहां गुणकाररूप दोयवार असंख्यातकी सहनानी करी । जैसे ही चतुर्थ समय पर्यंत रचना जाननी। तहाँ चौथे समय असंख्यातके आगे छहका अर सातका अंक है सो छहवार वा सातवार असंख्यात जानना । बहुरि बीचि मध्य समयनिकी रचनाको सहनानी विदी जाननी । बहुरि अंत समयविष प्रथम समय सम्यक्त्वरूप परिणम्या द्रव्यकौं दोय घाटि अंतमुहर्तका दूणाकरि तामैं दोय बधताकरि गुणित जो असंख्यात ताकरि गुण सम्यक्त्व प्रकृतिरूप परिणम्या द्रव्यकी संदृष्टि है। अर तिसहोकौं एक घाटि अंतमुहूर्त दूणा एक अधिक ताकरि गुणित जो असंख्यात ताकरि गुण मिश्रमोहरूप परिणम्या द्रव्यकी संदृष्टि हो है । अर तहां सम्यक्त्वमोहनी” मिश्रमोहनीविष, मिश्रमोहनीत सम्यक्त्वमोहविर्ष गुणकार अपेक्षा गमन कल्पित सर्पकी चालवत् रचना करी है । ७ख १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
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