SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 599
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२० क्षपणासार स्थिति कांडकायाम ऐसा हो है प । बहुरि वीचिमैं स्थिति सत्त्वके स्थिति कांडकके बहुत मध्य भेद जाननेके अथि विदोको संदृष्टिकरि संख्यात बाटि अतःकोटाकोटि सागर घाटिमात्र स्थिति ऐसी अं को २-१ तातै एक समय अधिक ऐसी अं को २-२ तामैं एक समय घाटि पृथक्त्व सागरप्रमाण स्थितिकांडकायाम ऐसा-सा ।७।८ । इहां पृथक्त्वको सहनानि सात वा आठ जाननी । बहुरि वीचिमें एक एक समय अधिक स्थिति सत्त्वविर्ष तावन्मात्र स्थिति कांडकायाम जाननेके अथि विदोनिको सहनानी करि एक घाटि अंतःकोटाकोटि सागर ऐसा-अं को २। संपूर्ण अंतःकोटाकोटि ऐसा अं को २ । तामैं स्थिति कांडकायाम पृथक्त्व सागरप्रमाण ऐसा सा ७८। बहुरि अपूर्वकरणकी आदिविषै स्थितिमत्त्व अंतःकोटाकोटि, स्थितिबंध तातै संख्यातवे' भागमात्र है । तिनकी संदृष्टि ऐसी | अंको २ । अंको २ अंको २ | अंको २ इहां संख्यातको संदृष्टि च्यारिका अंक है। ऐस स्थितिकांडकविधानविर्ष संदृष्टि जाननी । बहुरि अनुभाग कांडकका व्याख्यानविषै जघन्य वर्गणाकौं स्पर्धक शलाका ऐसी ९ । अर नाना गुणहानि ऐसो। ना। ताकरि गुण अंत गुणहानिकी प्रथम वर्गणा होइ । तामैं अंक संदृष्टि अपेक्षा तीन अधिक काए अत गुणहानिकी अंत वर्गणासबंधी उत्कृष्ट अनुभाग ऐसा व । ९ । ना। ताका अनंत बहुभागमात्र प्रथम कांडक ऐसा व । ९ । ना ख बहुरि अवशेष एक भागका अनंत बहुभाग ३-१० मात्र द्वितीय कांडक ऐसा व ९ ना ख। ऐसे अंत कांडक पर्यंत क्रम जानना । बहुरि एक गुणहानिके स्पर्धक संख्याकी संदृष्टि ऐसी ९। तातै क्रम” अनंतगुणे वीचिके अतिस्थापनरूप स्पर्धक अर नीचेके निक्षेपरूप स्पर्धक अर ऊपरि के अनुभागकांडकायामरूप स्पर्धक तिनको संदृष्टि ऐसी जाननो' स्पर्धक | अतिस्थापन | निक्षेप अनुभागकाडक इहां अनभागका कथन है तातें आडी ९ ख ९ख ख ९ख ख ख लीक करी है । ऐसें अपूर्वकरणविषै भए कार्यनिकी संदृष्टि कहो । बहुरि अनिवृत्ति करणविषै अन्तरकरण हो है तहां रचना ऐसी१. मुद्रित प्रतिमें असंख्यातवें यह पाठ है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001606
Book TitleLabdhisar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1980
Total Pages744
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Karma, & Samyaktva
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy